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    महाकुंभ का इतिहास क्या है

    ByHimanshu Papnai

    Jan 6, 2025 #INDIA, #news

    देवताओं की प्रिय संगम नगरी प्रयागराज में श्रद्धा और पवित्रता का वह नजारा दिखने वाला है जिसके बारे में कल्पना नहीं की जा सकती 12 साल का इंतजार करो रोशन दलों की आस्था और संगम पर पापों से मुक्ति का विश्वास । प्रयागराज में होने होने वाला महाकुंभ ऐसा मिला है जहां धर्म ज्योतिष और पौराणिक मान्यताएं मिलकर जीवित होती है हर 12 साल के बाद प्रयागराज मैं महाकुंभ का आयोजन किया जाता है इस बार प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी तक किया जा रहा है जहां देश विदेशी करोड़ों श्रद्धालु गंगा यमुना और सरस्वती के संगम में पवित्र स्नान करने पहुंच रहे हैं भारत में हर 12 साल में चार स्थानों पर

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    में कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है इस बार का कुंभ ऐतिहासिक है और अद्भुत होने वाला है क्योंकि इस बार यह भव्य मेला प्रयागराज में आयोजित होने जा रहा है उत्तर प्रदेश सरकार ने कुंभ मेला को लेकर भविष्य तैयार शुरू कर दी है प्रयागराज की बात करें तो इसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था यह शहर भारत की सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक शहरों में से एक माना जाता है प्रयागराज शहर का उल्लेख हमें महाकाव्य में मिलता है एवं गंगा यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम पर स्थित है जिसे तीर्थराज या तीर्थ का राजा भी कहा जाता है इससे भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का प्रथम यज्ञ स्थल भी माना जाता है इसके अलावा यह शहर मौर्य गुप्त और मुगल ब्रिटिश शासन काल में प्रयागराज का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बना रहा 16वीं शताब्दी में अकबर ने इसका नाम इलाहाबाद रख दिया लेकिन 2018 में भारत सरकार ने इसका नाम इलाहाबाद से बदलकर प्रयागराज कर दिया ।


    मान्यता है कि प्रयागराज के संगम पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथो और कविताओं सी हमें मिलता है कुंभ का धार्मिक सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व इतना गहरा है कि यूनेस्को की अमृर्त संस्कृत ध्रुव की सूची में शामिल किया गया है ऐसे में इस बार प्रयागराज में 12 साल के लंबे इंतजार के बाद कुंभ मेला का आयोजन किया जा रहा है यूपी सरकार ने इसके लिए तैयारी भी कर दी है प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर आयोजित होने वाला महाकुंभ मात्र एक मिला नहीं है बल्कि भारत और पूरे विश्व के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है ऐसे में सरकार इस ऐतिहासिक और संस्कृत महत्व का आयोजन को सुरक्षित और यादगार बनाने के लिए कार्य कर रही है इस बार महाकुंभ मिला इसलिए भी खास है क्योंकि इसकी भव्यता और दिव्यता को देखने के लिए 100 से अधिक देशों के लोग पहुंच रहे हैं और कई देशों के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी महाकुंभ को देखने के लिए आ रहे हैं इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए लोगों को 12 साल का इंतजार करना पड़ा कुंभ मेला हिंदू धर्म की सबसे पवित्र और प्राचीन परंपराओं में से एक है इस मेले के आयोजन के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है जिसे आज किस आर्टिकल बताएंगे इसीलिए हमारे को पूरा जरूर करें और अधिक से अधिक लोगों को शेयर अवश्य
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    महाकुंभ मेला की पौराणिक कथा क्या है

    इस मेले का उदय समुद्र मंथन से होता है जब समुद्र मंथन हुआ था अमृत निकला और अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी में गिरी


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    और इन स्थानों को बड़ा ही पवित्र माना गया और यहां कुंभ मेला का आयोजन शुरू हुआ इन स्थानों पर ही 4 साल पर कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है और शास्त्रों में प्रयागराज को तीर्थ का राजा कहा गया है ब्रह्मा जी ने पहले यज्ञ यहीं पर किया था और यह स्थान पवित्रता और धार्मिकता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है इसी वजह से हर 12 साल में यहां महाकुंभ लगाया जाता है प्रयागराज का महत्व त्रिवेणी संगम पर लगता है जहां गंगा यमुना और पौराणिक सरस्वती का मिलन होता है क्योंकि ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति को अपनी एक परिक्रमा करने पर 12 साल का वक्त लगता है मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि भारत की संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर को भी उजागर करता है कुंभ मेले का उपदेश श्रद्धालुओं को आत्म शुद्धि अवसर प्रदान करना। मान्यता यह भी है की कुंभ मेला के दौरान इन स्थानों पर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है


    कुंभ मेला साधुओं और श्रद्धालुओं के मिलन का केंद्र है जहां ज्ञान भक्ति और सेवा का आदान-प्रदान होता है बताया जाता है की मां को मेला का इतिहास 850 सालों से भी ज्यादा पुराना है यदि हम बात करें कुंभ मेले की किसी की शुरुआत किसने करी थी

    तो यह कहीं भी प्रमाणित जानकारी नहीं है लेकिन इसके बारे में जो भी वर्णन मिलता है वह सम्राट हर्षवर्धन के समय का है जब चीन के प्रसिद्ध तीर्थ यात्री यन सांग द्वारा वर्णन किया गया है पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत करी थी लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन से इसकी शुरुआत हुई थी महाकुंभ का संबंध कहीं ना कहीं खगोलिक घटनाओं से भी है ज्योतिष के अनुसार 12 राशि 12 महीने और समय चक्र प्रतिनिधित्व करता है तुम मानव जीवन से सीधे जुड़ी हुई होती है कुंभ राशि में बृहस्पति और सूर्य के आने का समय विशेष ऊर्जा में परिवर्तन का संकेत माना जाता है यह आत्म शुद्धि आस्था और ध्यान के लिए उपयुक्त समय है ज्योतिष शास्त्र के अनुसार महाकुंभ मेले का आयोजन सूर्य और बृहस्पति की विशेष परिस्थिति को देखकर किया जाता है जब सूर्य मकर राशि में और देवगुरु वृषभ राशि में होते हैं तब प्रयागराज में महाकुंभ मेला का आयोजन किया जाता है हिंदू ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है तब कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है बृहस्पति को अपनी कक्षा में एक परिक्रमा पूरी करने में 12 साल का समय लगता है इसी कारण कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजन किया जाता है


    निष्कर्ष


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