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    उत्तराखंड का इतिहास क्या है|(What is the history of Uttarakhand)

    नमस्कार दोस्तों Best My Smart Tips Blog में आपका स्वागत है देवभूमि उत्तराखंड  भारत का 27 वा राज्य है जिसकी स्थापना 9 नवंबर 2000 को की गई । इस राज्य को बनाने के लिए कई लोगों ने बहुत संघर्ष किया। कई लोग इस राज्य को बनाने के लिए शहीद हो गए पुलिस की लाठियां खाई लेकिन तब भी संघर्ष नहीं छोड़ा। श्री देव सुमन, देवचंद गढ़वाली जी जैसे कई लोग राज्य को बनाने के लिए संघर्ष करते रहे लेकिन यह राज्य का इतिहास क्या है?  आज हम आपको इसके बारे में जानकारी देंगे और इस राज्य के बारे में हमारे पुराण क्या कहते हैं ? और उत्तराखंड का अस्तित्व कहां से आया ? इन सभी विषयों के बारे में जानकारी आज की इस आर्टिकल में दी जाएगी इसलिए हमारी आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़ें और अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें ||

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    उत्तराखंड का इतिहास क्या है

    उत्तराखंड के बारे में सबसे पहले हमें जानकारी ऋग्वेद से मिलती है ऋग्वेद में उत्तराखंड को देवभूमि या मनीषियों की पूर्ण भूमि कहा गया है और ऐतरेय ब्राह्मण मैं उत्तराखंड को उत्तर कुरुक्षेत्र कहा गया है स्कंद पुराण में उत्तराखंड को दो भागों  में विभाजित किया गया है मानस खंड और केदार खंड है।

    मानसखंड है उत्तराखंड का गढ़वाल क्षेत्र और केदार खंड है उत्तराखंड का कुमाऊं क्षेत्र । उसे वक्त मानस खंड और केदार खंड के बीच  मैं नंदा देवी पर्वत चोटी थी और मानसखंड और केदार खंड को संयुक्त रूप से देखें तो पुराण में इस क्षेत्र को खसदेश, ब्रह्मपुर, उत्तर खंड आदि नाम से संबोधित किया गया है। और बौद्ध साहित्य जिन्हें पाली भाषा में लिखा गया है और मैं उत्तराखंड को हिमवंत कहा गया है और गढ़वाल को महाभारत बद्रीका आश्रम ,तपोभूमि, स्वर्ग भूमि कहा गया है जबकि कुमाऊं के लिए पुराण में आमतौर पर कुर्माचल शब्द का प्रयोग किया गया है।

    प्राचीन समय में गढ़वाल मंडल में दो विद्यापीठ उपस्थित थे बद्रीकाश्रम और कण्वाश्रम ।बद्रीकाश्रम के नाम से ही गढ़वाल मंडल को जाना जाता है और कण्वाश्रम मालिक की नदी के तट पर स्थित था जोकि राजा दुष्यंत और शकुंतला प्रेम कथा के लिए प्रसिद्ध है।

    किसी आश्रम में उनके पुत्र भारत का जन्म हुआ जिन्होंने शेर के दांत  भी गिने थे जिनके नाम पर हमारे भारत का नाम है। और कालिदास जी ने भी अपना काव्य अभिज्ञान शाकुंतलम की रचना भी यही करी। और राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम के बारे में इस काव्य खंड में बताया गया। वर्तमान में यह जगह पौड़ी गढ़वाल की चौकाघाट नाम से प्रसिद्ध है।

    सम्राट अशोक के अभिलेखों में से कलसी अभिलेख उत्तर पश्चिमी सीमा पर यमुना और टौंस नदी के संगम से प्राप्त होता है और उसमें सम्राट अशोक कहते हैं मैंने राज्य में हर स्थान पर मनुष्य और पशुओं की चिकित्सा की व्यवस्था कर दी है जो पालि भाषा में लिखा गया है। इससे हमें यह भी पता चलता है कि महाराज अशोक कि राज्य की सीमा इस सीमा तक फैली हुई थी और यहां के लोग मौर्य साम्राज्य के अधीन आते थे। काशी अभिलेख में यहां के लोगों को पुलिंग कहा गया है और इस क्षेत्र को अपरांत कहा गया है।

    उत्तराखंड में राज करने वाली प्रथम राज्य की करने वाली प्रथम शक्ति कुणिंद वश जो लगभग 900 B.C से लेकर 300 A.D तक राज करती है कहां जाता है कि यह मौर्य वंश के अधीन थी इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था आमोधभूति। इस राजा ने चांदी और तवे के सिक्के चलाएं।

    इसके बाद यहां शक वंश का आगमन हुआ और उन्होंने शक संवत चलाया और उन्होंने यहां कई तरह की सूर्य मंदिर बने अल्मोड़ा का सूर्य मंदिर सबसे अधिक प्रसिद्ध है।

    इसके बाद कुषा ,नागवंश, मौखरि उसने इसमें शासन किया और  और यह क्षेत्र बाद में राजा हर्षवर्धन के अधीन हो गया राजा हर्षवर्धन के समय ही banabhatta ने harscharita पुस्तक लिखी हर्षवर्धन ने 606 से 647 AD तक अपना राज  किया । इसी समय चीन का एक यात्री उत्तराखंड आया और इसने अपनी पुस्तक में उत्तराखंड को पो -लि-हि-मो-पु-लो और हरिद्वार को मो -यू -लो कहां और इसने अपनी पुस्तक में यह भी कहा कि यहां  बौद्ध धर्म का बहुत प्रचार प्रसार हैharscharita पुस्तक में उत्तराखंड को ब्रह्मपुर और हरिद्वार को मयूरपुर कहा गया है उत्तराखंड ही ब्रह्मपुर और मयूरपुर है इस बात की स्पष्ट करी अंग्रेजी इतिहासकार कार्निंघम लेकिन 647-48 AD राजा हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद यह राज्य कई छोटे बड़े रियासतों में बट गया।

    इसके बाद उत्तराखंड के सभी छोटे- बड़ी रियासतों को एकजुट करके लगभग 700 ईस्वी -1030 ई में एक नए वंश की स्थापना हुई कार्तिकेयपुर राजवंश। राजवंश ने प्रारंभिक 300 वर्ष राजधानी कार्तिकेयपुर जो की जोशीमठ चमोली में स्थित है।

    लेकिन इसी बीच गढ़वाल में एक नए पवार वंश का उदय होने लग गय इन्होंने अपनी राजधानी कुमाऊं की तरफ को शिफ्ट कर दी और अल्मोड़ा के कस्युरी घाटी में अपनी नई राजधानी बनाई। इनकी राजभाषा संस्कृत और लोक भाषा पालि थी इसी राजवंश में आदि गुरु शंकराचार्य आए और बद्रीनाथ मंदिर और केदारनाथ मंदिर का प्रचार प्रसार किया ऐसा भी कहा जाता है की बद्रीनाथ मंदिर पहले एक बहुत मंदिर था जिसे सम्राट अशोक के काल में बनाया था भारत में स्थित चार मठों में से ज्योतिर मठ की स्थापना इन्होंने की 820A.D मैं केदारनाथ में उनकी मृत्यु हो गई थी।

    कार्तिकेयपुर राजवंश को कुमाऊं का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश कहा जाता है इसके राजा थे बसंत देव । उसके बाद कत्युरी राजवंश का उदय होता है और यह कई भागों में विभक्त हो जाता है1191A.D मैं अशोक चलने कस्तूरी वंश पर आक्रमण किया और कुछ हिस्सा जीत भी दिया और इस वंश का अंतिम शासक था ब्रह्मदेव जिस वीरमदेव के नाम से भी जाना जाता है।

    1398AD तैमूर लगं कत्युरी वंश पर आक्रमण कर और हरिद्वार में ब्रह्मदेव यह युद्ध हुआ और ब्रह्मदेव मर गय कत्युरी वंश का अंत हो गया। एक वंश धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था और जैसे ही ड्यूटी वंश का अंत हो गया यह वंश पूरे कुमाऊं क्षेत्र में स्थापित हो गया और यह वंश नाम चंद्रवंश था के प्रथम राजा थोहर चंद्र थी और उनकी राजधानी थी चंपावत। और इनका राजकीय चिन्ह गाय था इनका राजवंश 1216A.D तक था. एक राजा भीष्म चंद्र ने अपनी राजधानी अल्मोड़ा बनाई और जैसे ही 1560AD इसकी मृत्यु हो जाती है और 1563 में बालो कल्याण चंद्र ने लाल मंडी का किला अल्मोड़ा में बनाया और मल्ला महल का किला बनाया 1790AD मैं महेंद्र चंद्र को गोरखाओं ने हराकर पूरे कुमाऊं क्षेत्र में कब्जा कर लिया।

    नवी शताब्दी आते-आते गढ़वाल क्षेत्र 52 छोटे- बड़ी रियासतों में बट गया और उन सभी राजाओं में सबसे बड़ा और शक्तिशाली राजा भानु प्रताप था जो चांदपुर का था और कनक पल जो कि गुजरात के शासक थे वह यहां आए और भानु प्रताप की लड़की से शादी करके और यही बसे।  ने कनक पाल यहां पवार वंश का उदय कर और अजय पाल ने 1515 ईस्वी में सभी गानों को जीतकर एक नया गढ़ बनाया जिसका नाम उसने रखा गढ़वाल। किसी ने अपनी राजधानी श्रीनगर बनाई। पावर वंश को शाह की उपाधि बहलोल लोदी ने दी थी।।1636AD पृथ्वी  शाह जो की अल्प आयु का था वह बैठा था रानी कर्णावती को उसका संरक्षण बनाया गया था और इस वक्त मुगल साम्राज्य आक्रमण करता है रानी कर्णावती ने आक्रमण करने वाले मुगलों की नाक कटा दी और यह किस्सा इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है।

    गोरख कुमाऊं वंश पर कब्जा करने के बाद 1791 मैं इन्होंने गढ़वाल मंडल पर भी आक्रमण किया लेकिन उसने वह पराजित हो गए लेकिन 1803 में जब गढ़वाल मंडल भयंकर भूकंप से पीड़ित था तब फिर फिर गढ़वाल मंडल ने आक्रमण कर और गढ़वाल मंडल का कुछ हिस्से पर राज कर लिया। 14 में 184 में प्रद्युम्न शाह ने गोरखाओं के खिलाफ निर्णायक युद्ध लड़ा और उनकी मृत्यु हो गई आप पूरा कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र गोरखाओं के अधीन हो गया सुदर्शन शाह ने अंग्रेजी गवर्नर से मदद मांगी और मदद भी करी 1814 अक्टूबर में अंग्रेजों ने मदद करी और गढ़वाल एक बार फिर स्वतंत्र हो गया। अंग्रेजों ने 7 लख रुपए युद्ध खर्च न देने के विरोध में गढ़वाल मंडल के कई हिस्सो कब्जा कर दिया। और सुदर्शन शाह को अपनी राजधानी टिहरी बनानी पड़ी और पवार वंश आप टिहरी रियासत से नाम के नाम से जाना और 28 नवंबर 1815 को कुमाऊं भी गोरखाओं से छीन लिया गया अंग्रेजों के द्वारा

    और 28 नवंबर 1815 को गोरखाओं के बीच संगोंली की संधि होती है लेकिन यह लागू मार्च 18 16 से होती है इसके बाद कुमाऊं और गढ़वाल का आदेश से ज्यादा का क्षेत्र अंग्रेजों के हाथों में रह गया की टिहरी रियासत को छोड़कर।

    जब अंग्रेजों ने उत्तराखंड के कई हिस्सों पर राज कर लिया तो उसके बाद हल्द्वानी और क्षेत्र का विकास मार्ग सही किया गया रेलवे ट्रैक बिछाई गई 24 अप्रैल 1884 में लखनऊ से हल्द्वानी के लिए पहली ट्रेन चलती है1891 उत्तराखंड को दो जिलों में बाढ़ दिया गया अल्मोड़ा और नैनीताल।

    जब भारत स्वतंत्र हुआ तो अल्मोड़ा ,नैनीताल, पौड़ी तीनों जिले भारत के साथ मिल गए लेकिन टिहरी रियासत भारत के साथ मिलने के लिए मना कर दिया और कई सारे आंदोलन के कारण भारत में मिलाना पड़ा। उसे समय भी अलकनंदा नदी से पूर्व का क्षेत्र कुमाऊं मंडल और पश्चिम का क्षेत्र गढ़वाल मंडल कहलाता था फिर 24 फरवरी 1960 1 अगस्त में अलग करके उत्तरकाशी जिला और चमेली जिले अल्मोड़ा जिले बनाए ।

    1 अगस्त 2000 को लोकसभा से उत्तराखंड राज्य को बनाने के लिए एक बिल जाता है और यह बिल 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा से पास हो जाता है उसके बाद वह राष्ट्रपति के पास आता है और 28 अगस्त 2000 को मान्यता दी जाती है इस तरह सभी प्रक्रिया पूरी होने के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड को एक अलग राज्य बना दिया जाता है राज्य उत्तरांचल बन जाता है और प्रथम मुख्यमंत्री बनते हैं नित्यानंद

    फिर इसका नाम उत्तराखंड के प्रथम मुख्यमंत्री उत्तरांचल से बदलकर उत्तराखंड कर देते हैं।

    निष्कर्ष

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