भारत में जब भी ग्रामीण रोज़गार की बात होती है, तो सबसे पहले मनरेगा का नाम सामने आता है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा ने बीते करीब दो दशकों में गांवों की तस्वीर बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है। इस योजना के ज़रिए करोड़ों ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम सौ दिन का रोज़गार मिला, जिससे न सिर्फ उनकी आय बढ़ी बल्कि गांवों से शहरों की ओर होने वाला पलायन भी काफी हद तक रुका। मनरेगा ने यह साबित किया कि अगर सरकार चाहे तो ग्रामीण गरीब को उसके ही गांव में काम और सम्मान दोनों दिए जा सकते हैं।
अब समय के साथ देश की सोच और लक्ष्य भी बदल रहे हैं। भारत ने वर्ष 2047 तक “विकसित भारत” बनने का संकल्प लिया है। इसी सोच के तहत सरकार अब पुरानी योजनाओं को नए दृष्टिकोण और नए नाम के साथ आगे बढ़ाने पर विचार कर रही है। इसी कड़ी में मनरेगा का नाम बदलकर “विकसित भारत गारंटी रोजगार योजना” किए जाने की चर्चा सामने आ रही है। यह बदलाव सिर्फ नाम तक सीमित नहीं माना जा रहा, बल्कि इसके पीछे सोच यह है कि ग्रामीण रोज़गार को अब सिर्फ राहत या सहायता की योजना के रूप में नहीं, बल्कि विकास की गारंटी के रूप में पेश किया जाए।
मनरेगा की शरुआत कब हुई थी
मनरेगा की शुरुआत जिस समय हुई थी, उस दौर में देश की प्राथमिकता भूख, बेरोज़गारी और गरीबी से लड़ना थी। उस समय यह योजना एक सामाजिक सुरक्षा कवच की तरह लाई गई थी, ताकि कोई भी ग्रामीण परिवार भुखमरी की स्थिति में न पहुंचे। लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। अब सरकार का फोकस सिर्फ रोज़गार देने पर नहीं, बल्कि ऐसे काम करवाने पर है जो गांव की अर्थव्यवस्था को मजबूत करें, प्राकृतिक संसाधनों को बचाएं और आने वाली पीढ़ियों के लिए टिकाऊ विकास का रास्ता तैयार करें। “विकसित भारत गारंटी रोजगार योजना” का नाम इसी बदली हुई सोच को दर्शाता है।
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नाम बदलने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि सरकार योजनाओं को नकारात्मक या पिछड़ेपन से जोड़कर नहीं देखना चाहती। “मनरेगा” शब्द आज भी कहीं न कहीं गरीबी, मजबूरी और अकुशल मजदूरी की छवि बनाता है। जबकि सरकार अब यह संदेश देना चाहती है कि ग्रामीण भारत सिर्फ मजदूरी करने वाला नहीं, बल्कि देश के विकास की रीढ़ है। नया नाम यह संकेत देता है कि यह योजना गांवों को विकसित भारत का हिस्सा बनाने की गारंटी देती है, न कि सिर्फ न्यूनतम रोज़गार।
इस प्रस्तावित योजना के तहत काम के स्वरूप में भी बदलाव की संभावना जताई जा रही है। पहले जहां मनरेगा के तहत ज़्यादातर मिट्टी के काम, कच्ची सड़कें या अस्थायी ढांचे बनाए जाते थे, वहीं अब स्थायी और गुणवत्तापूर्ण कार्यों पर ज़ोर दिया जा सकता है। जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन, तालाबों का पुनर्जीवन, खेतों तक पक्की सड़कें, कृषि से जुड़ा आधारभूत ढांचा और हरित परियोजनाएं इस योजना का मुख्य हिस्सा बन सकती हैं। इससे गांवों में सिर्फ रोज़गार ही नहीं, बल्कि उत्पादन और आय के नए साधन भी पैदा होंगे।
एक अहम बदलाव यह भी हो सकता है कि इस योजना को कृषि और स्थानीय उद्योगों से सीधे जोड़ा जाए। अगर ग्रामीणों को उनके गांव में ही कृषि आधारित प्रोसेसिंग, भंडारण, या छोटे उद्योगों से जुड़ा काम मिलने लगे, तो उनकी आय में स्थायी बढ़ोतरी संभव है। “विकसित भारत गारंटी रोजगार योजना” का उद्देश्य यही बताया जा रहा है कि गांव आत्मनिर्भर बनें और सरकारी सहायता पर उनकी निर्भरता धीरे-धीरे कम हो।
सरकार यह भी संकेत दे रही है कि भविष्य में रोज़गार की गारंटी सिर्फ हाथ से काम करने तक सीमित नहीं रहेगी। डिजिटल साक्षरता, स्थानीय सेवाएं, पंचायत स्तर के तकनीकी कार्य और सामुदायिक सेवाओं को भी इस योजना से जोड़ा जा सकता है। इससे पढ़े-लिखे ग्रामीण युवाओं को भी अपने गांव में काम के अवसर मिल सकते हैं, जो आज मजबूरी में शहरों की ओर पलायन करते हैं।
हालांकि नाम बदलने और योजना में बदलाव को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। कई लोग मानते हैं कि सिर्फ नाम बदलने से ज़मीनी हकीकत नहीं बदलती। असली ज़रूरत यह है कि भुगतान समय पर हो, काम की उपलब्धता बनी रहे और भ्रष्टाचार पर सख्ती से लगाम लगे। अगर “विकसित भारत गारंटी रोजगार योजना” इन समस्याओं का समाधान कर पाती है, तभी यह बदलाव सार्थक माना जाएगा।
यह भी जरूरी है कि इस योजना में मजदूरी दर को महंगाई के हिसाब से समय-समय पर बढ़ाया जाए। आज भी कई राज्यों में मनरेगा मजदूरी दर न्यूनतम मजदूरी से कम है, जिससे श्रमिकों का रुझान घट रहा है। विकसित भारत की बात तभी सही मायने में होगी जब गांव का मजदूर भी सम्मानजनक आय के साथ जीवन जी सके।
कुल मिलाकर, मनरेगा से विकसित भारत गारंटी रोजगार योजना तक का सफर सिर्फ एक नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि सोच में बदलाव का संकेत है। यह बदलाव अगर सही नीयत और मजबूत क्रियान्वयन के साथ लागू होता है, तो यह योजना ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर, सशक्त और विकसित बनाने में मील का पत्थर साबित हो सकती है। आने वाला समय बताएगा कि यह बदलाव सिर्फ कागज़ों तक सीमित रहता है या वास्तव में गांव की ज़िंदगी में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। जहां महात्मागांधी गांधी गारंटी योजना2005 लाया गया था वही विकसित भारत गारंटी योजना के तहत 125 दिन का काम और भुगतान या उसी दिन या सप्ताह भुगतान किया जाएगा। वही पहले महात्मा गांधी गारंटी रोजगार मैं 100 दिन का काम मिलता था जिसका जिसका भुगतान 15 दिनमें किया जाता था।
निष्कर्ष
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