ऐसे क्या कारण है कि हमारे पड़ोसी पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के एक आम हिमाचली के चेहरे में जहां आत्मविश्वास और संपन्नता झलकती है वही उसकी तुलना में एक आम उत्तराखंड के उदासी लाचारी और हताशा ही नजर आती है आज इस वीडियो में उत्तराखंड के विकास की गाथा की बात करते हुए हम अपनी तुलना पड़ोसी पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश से करेंगे जैसा आपने खुद कई बार महसूस किया होगा एक तरह से हिमाचल प्रदेश को उत्तराखंड के लिए एक रोल मॉडल के तौर पर पेश किया जाता है लेकिन हकीकत तो यह है कि उत्तराखंड अपने 24 साल के सफर में कहीं से भी हिमाचल की राह पर चलता नजर नहीं आया इतिहास खेती-बाड़ी सुशासन यानी गवर्नेंस और कई अन्य पहलुओं को छोटे हुए इस आर्टिकल में हम यह जानने समझने की कोशिश करेंगे कि उत्तराखंड में हमक्यों कहां और कैसे पूरी तरह पीछे गए उम्मीद रहेगी कि आप इसलेख आर्टिकल को अंत तक जरूर देखेंगे सबसे पहली बात समानताओं की यह बात सच है
कि दोनों राज्यों में बहुत सारी समानताएं सबसे बड़ी समानता तो यह की दोनों का भूगोल ज्यादातर पर्वतीय है हिमाचल का क्षेत्रफल किलोमीटर है तो उत्तराखंड का क्षेत्रफल इसे थोड़ा ही कम यानी 53483 स्क्वायर किलोमीटर है उत्तराखंड में 13 जिले हैं तो हिमाचल में 12 यहां 70 विधानसभा के लिए विधायक चुने जाते हैं तो वहां 68 उत्तराखंड दिल्ली के लिए 5 सांसद भेजता है तो हिमाचल कर एक और बड़ी समानता यह भी है कि दोनों राज्यों की है उत्तराखंड में घोषित ग्रीष्मकालीन राजधानी है तो वही हिमाचल प्रदेश में शिमला के बादधर्मशाला को शीतकालीन राजधानी घोषित कर दिया गया है इन्हीं सब आंकड़ों को दिमाग में समेट कर जब एक आम उत्तराखंड वासी हिमाचल के शिमला किन्नौर और सिरमौर जिलों की यात्रा करता है तो वहां के दूरस्थ गांव में रहने वाले लोगों के चेहरे पर जैसे वीडियो के शो में ही आपसे बात हुई जितनी संपदा देखा है उसकी तुलना में वह अपने प्रदेश के लोगों के चेहरों को उदास फीका और लाचार ही पता है अब आप ही बताइए और ज़रूरतें होने के बावजूद आखिर क्या वजह है कि उत्तराखंड की खुशहाली किसी शापित व्यक्ति की तरह चेहरा छुपाए नजर आती है वहीं हिमाचल में जिले का हर गांव की अपने आप में एक मॉडल विलेज नजर आता है हिमाचलियों की जेल में पैसा है तो उनके चेहरे पर नूर और आत्माविश्वास झलकता है खेलता हुआ इधर-उधर सिस्टम और नेताओं के किसी जुगाड़ पर ही निर्भर नजर आता है इन तमाम परिस्थितियों का जवाब तलाशने के लिए हमें 70 के दशक की शुरुआत की राजनीतिक यात्रा करनी होगी
देश के 18 में राज्य के रूप में हिमाचल प्रदेश का गठन 25 जनवरी 1971 को हुआ इस तारीख से पहले हिमाचल का आम युवा रोजगार के लिए पंजाब दिल्ली और हरियाणा के मैदानी शहरों में जाता था और किसी बड़े साहब की कोठी में नौकरी कर अपने जीवन को एक अंत ही न दोहराव में अवधारणा से लैस हिमाचल प्रदेश राज्य का गठन हुआ
और आम हिमाचलियों के सौभाग्य से उनके पहले ही मुख्यमंत्री श्री यशवंत सिंह परमार अपने राज्य के भूगोल की तरह पर्वतीय अवधारणा वाले निकले परमार जी ने हिमाचल गठन के बाद शिमला के ऐतिहासिक मैदान पर दिए अपने पहले ही भाषण में ऐलान कर दिया कि अब हिमाचल में दिल्ली पंजाब की कोठियां में बर्तन धोने वाला युवा पैदा नहीं होगा इसकी जगह हिमाचल में अभिषेक पैदा होगा हिमाचल से कुछ बाहर जाएगा तो यहां का सब जाएगा इसके बाद वाईएस परमार ने राज्य के हर जिले का दौरा किया और तमाम कृषि विश्वविद्यालय की नींव रखी साथ ही राज्य में मजबूत सड़कों के नेटवर्क पर युद्ध स्तर पर काम शुरू किया उसके बाद क्या हुआ यह हिमाचल की संपन्नता खुद बयां करती है अब किन्नर जैसे दूरस्थ क्षेत्र का औसत किस करोड़ों में सब का कारोबार करता है आज हिमाचलियों के खेतों में पंजाब हरियाणा बिहार यूपी और नेपाली मजदूर काम करते हैं देश में कश्मीर के बाद सबसेमीठे सेब हिमाचल प्रदेश में मिलते हैं गला बंद कोर्ट पॉलिश किए हुए भूत पहले कास्ट कर अपने खेतों के सेवाओं को 10 टायर वाले ट्रैकों पर लोड होते गर्व से देखा है निश्चित तौर पर ऐसे लबों पर उन्हें सौभाग्य से मिले ऐसे मुख्यमंत्री वाईएस परमार का वह प्रेरणादायक और विजन से भरपूर भाषण की अब हिमाचल में बर्तन धोने वाला युवा पैदा नहीं होगा और हिमाचल में सब पैदा होगा याद आता ही होगा दोस्तों लिए सन 2000 में 9 नवंबर को हुआ लेकिन उसके दो मैदान में जिले शुरुआती दौर की इच्छा के विपरीत जोड़ दिए गए अवधारणा पर आधारित राज्य पहले दिन से ही उन्हें गिर गया और उसके बाद अभी तक कभी नहीं समझ पाया जिस राज्य में हिमाचल की तर्ज पर फल और सब्जी हो सकती थी वहां संपन्निता का आधार मुख्य ताऔर पर खनन शराब के प्रॉपर्टी अतिक्रमण ट्रांसफर पोस्टिंग सरकारी नौकरियां व्यापक भ्रष्टाचार और बंजर पड़ी जमीनों को दम पर बेचने से मिलने वाली कमिश्नर बन चुकी है हिमाचल उत्तराखंड के रूप में इन दोनों पर्वतीय राज्यों के बीच एक और बड़ा अंतर भू कानून के रूप में भी है हिमाचल में पहले से ही कानून लागू है यानी यहां गैर हिमाचली जमीन नहीं खरीद सकता है इस कारण हिमाचल की खेती बची रही
लेकिन उत्तराखंड में भू कानून के लिए लंबे आंदोलन के बावजूद इस मोर्चे पर उत्तराखंड सरकार के सर से पूरी तरह छुट्टी और निराशा है मजेदार बात तो यह भी है कि जो सरकार बिना मांग कहीं उत्तराखंड में सबसे पहले समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का दावा करती है बाद में उत्तराखंड सरकार भू कानून लागू कर दिया
अपने पिछले 24 सालों के 10 से 12 मुख्यमंत्री की भी हो जाए कई लोग शिकायत करते हैं कि उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री हरियाणा मूल के थे लेकिन इससे क्या वाकई कोई फर्क पड़ा होगा उसके बाद उत्तराखंड के सारे मुख्यमंत्री पर्वतीय क्षेत्र से थे इस तरह यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उत्तराखंड का यह दुर्भाग्य है कि उसे आज तक अपना वॉइस परमार नहीं मिल पाया दोस्तों दुनिया उम्मीद पर टिकती है तो यह जानना भी जरूरी है
कि जो सब हिमाचल में होता है उसको उगाने के लिए जो स्थिति चाहिए वह हमारे राज्य उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में भी है उत्तराखंड में हिमाचल के मुकाबले अधिक नदियां उत्तराखंड पिछले 24 सालों से उस दिन का इंतजार कर रहा है जब कोई विजनरी मुख्यमंत्री के मैदान से भाषण देते हुए उत्तराखंड के लोगों को कहेगा कि अब उत्तराखंड के लोग सिर्फ खनन शराब कमीशन और सरकारी नौकरियों के लिए ही लालच नहीं होंगे अपनी जमीनों पर ईमानदारी से अपनी तकदीर और अपनी तस्वीर बेहतरीन के लिए खुद लिखेंगे और बदलेंगे
2000 को शुरू हुआ उत्तराखंड का सफरनामा अब अपने 25 वर्ष पूर्ण करने की कगार पर है राज्य सरकार इसे बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है आज जब हम राज्य स्थापना दिवस से 4दिन पहले यह article बना रहे हैं तब विभिन्न कार्यक्रमों और आयोजनों के माध्यम से विकसित और सशक्त उत्तराखंड का संदेश और उसकी गूंज आप तक पहुंचाने की तैयारी के बीच पिछले कई वर्षों की एक बेहद गंभीर और सच्चाई उत्तराखंड विधानसभा की कार्रवाई से जुड़ी हुई है एक ऐसी सच्चाई जो अब तक प्रदेश के लोगों से लगभग छिपी रही है इस विषय पर चर्चा हुई
और ना ही या जनता के बीच कोई प्रमुख मुद्दा बन पाया लेकिन आज जब माननीय राष्ट्रपति महोदय को आमंत्रित कर तीन और चार नवंबर को विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र यानी स्पेशल सेशन आयोजित करने जा रही है तो यह उचित समय है कि हम इस विषय पर गहराई से बात करें कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में आखिर उत्तराखंड की विधानसभा कितना चलती है उसमें कितना काम होता है और क्या हमारी सरकार और हमारेमाननीय विधायक जनता की समस्याओं के ऊपर कितनी चर्चा करते हैं

विधानसभाओं के आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं जिन्हें हमने देश की जानी-मानी संस्था पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च वार्षिक रिपोर्ट के हवाले से लिया है सबसे पहली बात पिछले 8 वर्षों की 2017 से 2024 तक देश के 29 राज्यों की सूची में जब हम यह देखते हैं कि किस राज्य की विधानसभा और प्रतिवर्ष कितने दिन चली तो पता चलता है कि 29 राज्यों की इस सूची में उत्तराखंड 25 में स्थान पर है | जहां केरल में विधानसभा में 31 बिहार |राजस्थान और तमिलनाडु में 29 | हिमाचल प्रदेश में 28 | गुजरात में 26 | छत्तीसगढ़ में 25 | असम में 24 |झारखंड में 23 | आंध्र प्रदेश गोवा मिजोरम तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में 19 | मध्य प्रदेश में 18 | दिल्ली में 17 |मेघालय में 15 हरियाणा में 14 | तथा पंजाब में 13 दिन | विधानसभा चली उत्तराखंड में विधानसभा प्रतिवर्ष सिर्फ 12 दिन चली अवधि कानून नीति बजट और जनहित के मुद्दों पर बहस करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी का समय होता है अब बात करते हैं पिछले साल यानी 2024 की पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च की हालिया रिपोर्ट ने देश की 31 राज्य विधानसभाओं का विश्लेषण किया इस रिपोर्ट के अनुसार उड़ीसा सबसे आगे रहा जहां 2024 में विधानसभा का सत्र 42 दिन चला केरल | में पश्चिम बंगाल में 36 | कर्नाटक में 29 | राजस्थान और महाराष्ट्र में 28 | हिमाचल प्रदेश में 27 | छत्तीसगढ़ में 26 | दिल्ली में 25 तेलंगाना और गोवा में | 24 गुजरात और बिहार में | 22 झारखंड में 20 आंध्र प्रदेश में | 19 तमिलनाडु में | 18 असम में |17 उत्तर प्रदेश में | 16 मणिपुर में |14 मेघालय और हरियाणा में 13 पुडुचेरी में | 12 त्रिपुरा में |11 दिन दूसरी ओर उत्तराखंड में अरुणाचल प्रदेश की तरह केवल 10 दिन का सत्र चलाया
तालिका 1: क्षेत्रफल, विधानसभा सीटें और सांसदों की तुलना
| विशेषता | उत्तराखंड | हिमाचल प्रदेश |
|---|---|---|
| क्षेत्रफल (स्क्वायर किमी) | 53,483 | ~55,673 |
| जिले | 13 | 12 |
| विधानसभा सीटें | 70 | 68 |
| लोकसभा सीट | 5 | 4 |
| राजधानी व्यवस्था | देहरादून (ग्रीष्मकालीन घोषित) | शिमला (ग्रीष्म), धर्मशाला (शीत) |
तालिका 2: राज्य गठन व शुरुआती नेतृत्व तुलना
| राज्य | गठन तिथि | पहले मुख्यमंत्री | प्रमुख विज़न |
|---|---|---|---|
| हिमाचल प्रदेश | 25 जनवरी 1971 | वाई. एस. परमार | कृषि-बागवानी, सड़कों से कनेक्टिविटी, स्वरोज़गार |
| उत्तराखंड | 09 नवंबर 2000 | नित्यानंद स्वामी | प्रारंभ से स्पष्ट विकास विज़न की कमी |
तालिका 3: विधानसभा कार्य दिवस (औसत 2017–2024)
| रैंक | राज्य | प्रतिवर्ष औसत कार्य दिवस |
|---|---|---|
| 1 | केरल | 31 |
| 2 | बिहार / राजस्थान / तमिलनाडु | 29 |
| 3 | हिमाचल प्रदेश | 28 |
| … | … | … |
| 25 | उत्तराखंड | 12 |
तालिका 4: वर्ष 2024 — कार्य दिवस तुलना
| रैंक | राज्य | सत्र चला (दिन) |
|---|---|---|
| 1 | ओडिशा | 42 |
| 2 | केरल | 38 |
| 3 | पश्चिम बंगाल | 36 |
| 6 | हिमाचल प्रदेश | 27 |
| … | … | … |
| 26/27/28 | उत्तराखंड / अरुणाचल | 10 |
तालिका 5: वर्ष 2024 — कुल कार्य घंटे तुलना
| रैंक | राज्य | कुल समय (घंटे) |
|---|---|---|
| 1 | केरल | 228 |
| 2 | ओडिशा | 193 |
| 7 | हिमाचल प्रदेश | 125 |
| … | … | … |
| 28 | उत्तराखंड | 60 |
तालिका 6: वर्ष 2023 — कार्य दिवस तुलना
| राज्य | कार्य दिवस |
|---|---|
| हिमाचल प्रदेश | 31 |
| झारखंड | 29 |
| छत्तीसगढ़ | 28 |
| उत्तराखंड | 7 |
यानी उत्तराखंड देश की 31 विधानसभा में संयुक्त रूप से 26 वन 27 वन 28वें स्थान पर यानी एक बार फिर से पिछले पायदान पर रहा
उत्तराखंड विधानसभा इतने कम दिन क्यों चलती है और इसका राज्य के विकास पर क्या असर पड़ता है
इसी तरह 2024 में यदि हम बैठक अवधि यानी विधानसभा कितने घंटे चली रहा है केरल में विधानसभा 228 घंटे उड़ीसा में | 193 घंटे महाराष्ट्र और राजस्थान में |187 गोवा में |172 छत्तीसगढ़ में | 155 तेलंगाना में | 139 कर्नाटक में | 145 पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में | 125 गुजरात में | 113 आंध्र प्रदेश में | 97 तमिलनाडु में | पश्चिम बंगाल में | 93 असम में उत्तर प्रदेश में 87 | मध्य प्रदेश में 82 त्रिपुरा में 70 | मणिपुर में 65 बिहार और हरियाणा में 64 घंटे | तथा झारखंड में 61 घंटे तक चली इन सब के मुकाबले केवल 60 घंटे चलने वाली उत्तराखंड विधानसभा इस सूची में भी देश के 28 राज्यों में स्थान पर है तो देश के 28 राज्यों में सबसे कम यानी 7 दिन चलने वाली विधानसभा में उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश का नाम शामिल रहा इस तरह हमारा रैंक 28 राज्यों में 2023 की बात करें
तो हमारे पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में उत्तराखंड की तुलना में चार गुना ज्यादा यानी 31 दिन विधानसभा चली झारखंड छत्तीसगढ़ कैसे राज्य जिनका गठन उत्तराखंड के साथ ही नवंबर 2000 में हुआ था वह विधानसभा आयोजित हुआ इसी के साथ 2023 में उत्तराखंड विधानसभा मात्र 44 घंटे चली इस सूची में भी 26 राज्यों में से उत्तराखंड का स्थान दोस्तों यहां पर हमारे आंकड़े समाप्त हो गए हैं और अगर आप अभी तक हमारे साथ जुड़े हुए हैं तो जरा सोचिए कैसा महसूस कर रहे हैं आप क्या हमें यह नहीं पूछना चाहिए कि उत्तराखंडकब तक सबसे पिछले बेंच पर बैठा रहेगा कब तक रहेंगे कि हमारे चुने हुए जन्मपत्नी थी साल में सिर्फ कुछ भी विधानसभा जाते हैं और वहां भी बिना किसी गंभीर बहस के सत्र खत्म हो जाते हैं जिसे चलाना सरकार की जिम्मेदारी होती है यह समझना जरूरी है कि विधानसभा केवल प्रश्न कल्याणी क्वेश्चन अवर के लिए ही नहीं चलती बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य विधायक कार्य यानी लेजिसलेटिव बिजनेस करना है विधायक यानी पेश करना उन पर चर्चा करना कानून बनाना और उन्हें पारित करना यही विधायक का मूल और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है
कि उत्तराखंड विधानसभा के सत्र बहुत कम चलाते हैं और विधायक चर्चा नहीं होती राज्य सरकारअक्सर यह कहती है कि उसके पास बिजनेस नहीं है यानी विधायक का कार्य नहीं है कि प्रदेश में ऐसे विषय हैं कई कानून ऑर्डिनेंस यानी अध्यादेश के रूप में ले जा रहे हैं जब कोई कानून पहले से ही अध्यक्ष द्वारा लागू कर दिया गया हो तो फिर विधानसभा में उसे पर बहस का ज्यादा अवसर ही नहीं बचता है इन सब के बीच के बेहद बड़ी चिंताएं यह भी है कि अधिकांश विधायकों में विधायक भीम की समझ रुचि दोनों की कमी है इसके अलावा मुख्यमंत्री जी के पास 30 से 40 विभाग है और उनसे आप कोई सवाल इसलिए नहीं पूछ सकते क्योंकि इस पूरी प्रक्रिया में मुख्यमंत्री के सवालों के लिए सोमवार यानी वनडे फिक्स्ड है जो विधानसभा के दिनों में कभी आता ही नहीं । लेकिन क्या उत्तराखंड हमेशा काम विधानसभा सत्र चलाने में ही आएगा क्या उत्तराखंड में काश के ऊपर चर्चा नहीं चल सकती सत्र में।
निष्कर्ष
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उत्तराखंड का इतिहास क्या है|(What is the history of Uttarakhand)
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