चलिए बात करते हैं एक वंश की। उत्तराखंड जो 9 नवंबर 2000 को भारत के 27 राज्य के रूप में विकसित हुआ इस राज्य को बनाने के लिए कई आंदोलन हुए कई लोग इस राज्य को बनाने के लिए शहीद हो गए लेकिन भारत में राज्यों का अस्तित्व कहां से आया चलिए हम आपको बताते हैं जब भारत आजाद हुआ 15 अगस्त 1947 को तो उसके बाद बात होने लग गई संविधान की संविधान का मतलब होता है नियम से।
लेकिन 15 अगस्त 1947 के समय कई राज्यों को एक करना था क्यूंकि क्योंकि अंग्रेजों ने एक ऐसी सिस्टम प्रणाली बना दी थी जिससे जिससे वह चाहते थे कि भारत कभी एक ना हो पाए लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल को दिया गया राज्यों को एक करने का जिम्मा और राज्यों को भारत के साथ जोड़ने के लिए उनको उनसे कहा गया भारत आजाद होते वक्त कई रियासतें भारत के साथ मिलने के लिए इंकार कर रही थी ऑपरेशन ऑपरेशन पोलो के तहत हमने हैदराबाद को भारत के साथ मिला दिया जन्म संग्रह से हमने जूनागढ़ को भारत के साथ मिलाया और संधि करके हमने जम्मू कश्मीर को भारत के साथ मिलाया लेकिन उसके बाद में 1954 में हमने पांडिचेरी और 1961 में हमने गोवा को भारत के साथ मिलाया लेकिन जब राज्यों को बांटने की बात आई तो कई मतभेद हुए घर सब समिति 1948 में बनती है जो कहती है भाषा के आधार पर राज्यों को हम नहीं बना सकते है
उसके बाद जवाहरलाल नेहरू सरदार वल्लभभाई पटेल भी कहते हैं की भाषा के आधार पर हम राज्यों को नहीं बना सकते है
लेकिन इंसान 1953 में आंध्र प्रदेश पहला राज्य बन जाता है भाषा के आधार पर ।
और उसके बाद पंजाब में विद्रोह हो जाता है और 1966 में शाह कमेटी के द्वारा पंजाब हरियाणा और चंडीगढ़ को अलग कर दिया जाता है ऐसे ही कई राज्य बने उत्तराखंड भी 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड से अलग हो गया लेकिन उत्तराखंड का अगर इतिहास की बात करें तो उसके इतिहास बहुत पुराना है कार्तिकेयपुर राजवंश चंद्रवंश, मौर्य वंश जैसे कई वंश उत्तराखंड में आते हैं लेकिन अपने पपनै जाति कहां से आयी। इसके बारे में अक्सर किसी को पता होता नहीं है हमने कुछ रिसर्च करें और उसके अनुसार हम आपको बताने जा रहे हैं पपनै जाति का कहां से आई थी और इसका इतिहास क्या है तो चलिए इस पूरे इतिहास को हम सभी साथ में पढ़ते हैं
पपनै ब्राह्मणों का इतिहासः
(डोटी-उप्रैती) कत्युरी काल से गोरखा विजय तक
प्रमुख कुमाऊँनी इतिहासकारों के अनुसार, कुमाऊँ ब्राह्मणों के कई उपनाम (Surname), गाँव/क्षेत्र के नाम से बनते रहे। इतिहासकारों ने यह उल्लेख किया है कि पपनै उपनाम रखने वाले कुमाऊँ ब्राह्मण ‘डोटी’ या उसकी उपरी शाखा ‘उप्रेरी’ से निकले हुए माने जाते हैं। “History of Kumaun” जैसी पुस्तकों में लिखा है
मुख्य सन्देश:
13वीं शताब्दी में कत्यूरी वंश की उपशाखा द्वारा डोटी राज्य की स्थापना से लेकर 1790 ई.में गोरखा विजय तक,
उप्रैती और पपनै ब्राह्मणों ने धार्मिक,शैक्षणिक व प्रशासनिक भूमिकाओं के माध्यम से हिमालयी संस्कृति को समृद्ध बनाया।
कत्युरी साम्राज्य का उत्कर्ष (700–1050 ई.)
प्राथमिक शासक कत्युरी वंश के राजा वासु देव ने लगभग 700 ई. में जोशीमठ (प्रारंभिक) तथा बाद में बैजनाथ (द्वितीय) को राजधानी बनाकर कुरमंचल राज्य की स्थापना की।
मंदिर निर्माण: जगेश्वर, कटार्मल, बसदेव (जोशीमठ) इत्यादि के शिलालेख कत्युरी कला की अमर गवाही देते हैं।
साम्राज्य का विघटन एवं लघु राज्यों का उदय (1050–1250 ई.)
लगभग 1050–1200 ई. के बीच भीतर घुटने के कारण कत्युरी साम्राज्य ८ उपराज्य में विभाजित हुआ—दिव्य Askot, Baramandal, Baijnath, Dwarahat, Doti इत्यादि।
12वीं शताब्दी: कत्यूरी राजाओं के दरबार में पुरोहितों व ब्राह्मणों को महत्वपूर्ण भूमि-दान एवं पदों से सम्मानित किया गया।
डोटी राज्य की स्थापना (13वीं शताब्दी)
- लगभग 1250 ई. में निरंजन मल्ल देव, कत्यूरी वंश की अंतिम संतान, ने डोटी में रैका उपशाखा का राज्य स्थापित किया।
- प्रमुख शासक: नागी मल्ल, रिपु मल्ल, धीीर मल्ल, आनंद मल्ल, कृतिमल्ल, बलिनारायण मल्ल, प्रियव्रत मल्ल इत्यादि।
- सीमाएँ: कुमाऊँ की पश्चिमी सीमा से नेपाल की पूर्वी सीमा तक फैली।
उप्रैती ब्राह्मणों का आगमन एवं समाज में भूमिका
- कत्यूरी दरबारों ने कन्न्यकुब्ज ब्राह्मण श्री शंभू शर्मा को 13वीं शताब्दी में चौकी (डोटी) से पिथौरागढ़ के उप्रारा गाँव में सीमांत पुरोहित पद प्रदान किया। इनके वंशज ‘उप्रैती’ नाम से विख्यात हुए[पांडे].
- भूमिकाएँ: राजपुरोहित, ज्योतिषाचार्य, शासकीय सलाहकार, मंदिर-पुरोहित।
- विशेषाधिकार: भूमि-दान, कर-मुक्ति, शाही संरक्षण।
पपनै ब्राह्मणों का सम्बन्ध
ऐतिहासिक प्रसंगों में ‘डोटी के उप्रैती (उपरेरी)’ उपनाम से जुड़ी पपनै वंशावली पश्चिम नेपाल के डोटी क्षेत्र या वहां से प्रवासित ब्राह्मण है।
प्रमुख कुमाऊँनी इतिहासकारों के अनुसार, कुमाऊँ ब्राह्मणों के कई उपनाम (Surname), गाँव/क्षेत्र के नाम से बनते रहे। इतिहासकारों ने यह उल्लेख किया है कि पपनै उपनाम रखने वाले कुमाऊँ ब्राह्मण ‘डोटी’ या उसकी उपरी शाखा ‘उप्रेरी’ से निकले हुए माने जाते हैं। “History of Kumaun” जैसी पुस्तकों में लिखा है
“History of Kumaun” (English version of “Kumaun Ka Itihas”) किताब प्रसिद्ध इतिहासकार बद्री दत्त पांडे (Badri Datt Pandey) ने लिखी है। यह किताब 1937 में पहली बार प्रकाशित हुई थी, और इसे कुमाऊँ के इतिहास एवं समाज का सबसे प्रमुख ग्रंथ माना जाता है।
पपनै (Papnai) और उप्रेरी (Upreri) का संबंध:
- • किताब में कुमाऊँ क्षेत्र की ब्राह्मण जातियों की जब सूची दी गई है, वहाँ लिखा है:
- “Papnais claim to be the Upreris of Doti.”
- • इसका अर्थ यह है कि पपनै उपनाम वाले ब्राह्मण नेपाल के डोटी क्षेत्र की “उप्रेरी” शाखा से अपना संबंध मानते हैं। यह जानकारी अंग्रेज़ इतिहासकार Atkinson की शोध पर आधारित बताई गई है।
- • उक्त विवरण “History of Kumaun” की अंग्रेज़ी अनुवादित प्रति के “Castes, People, Religion” अध्याय में आता है। यह विशिष्ट जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध PDF व डिजिटल कापी के अनुसार पेज 535-536 (anyflip.com की फ्लिपबुक के अनुसार) के आसपास मिलती है, जब ब्राह्मण जातियों की स्थानीय उपन्यास और उत्पत्ति की चर्चा हो रही है।
- • Papnai और Upreri of Doti का संबंध—यानी Papnai ब्राह्मणों को Upreri ब्राह्मणों की शाखा माना गया है—यह विवरण किताब के “Castes, People, Religion” शीर्षक वाले अध्याय में, लगभग पेज 535-536 के आसपास मिलता है।
- • संदर्भ व विवरण विशेषतः Atkinson की Gazetteer के संदर्भ में दिए गए हैं, जिनका हवाला भी इस खंड में मिलता है।
नोट: यदि आपको इस किताब का डिजिटल प्रमाण चाहिए,
History-of-Kumaun-Translation-CM-Agrwal-Part02″ ई-बुक फ्लिपबुक (anyflip.com) पर पेज 535-536 देखें—वहाँ उपरोक्त बयान सीधे पढ़ा जा सकता है।
पपनै ब्राह्मण गोत्र
• पपनै के अधिकतर ब्राह्मण उपमन्यु गोत्र के अंतर्गत आते हैं।
• यह गोत्र वैदिक काल के ऋषि उपमन्यु से जुड़ा हुआ है, जिनका संबंध आथर्वण परंपरा से बताया जाता है।
• पपनैई ब्राह्मणों को स्थानीय रूप से “पंडित पपनै” कहा जाता है, जो पुरोहित, विद्वान और कई बार राजदरबार में सलाहकार रहे हैं।
गोरखा विजय व राजनीतिक परिवर्तन (1790–1816 ई.)
1790 ई. में गोरखा साम्राज्य ने डोटी पर अधिकार कर उसे नेपाल में सम्मिलित कर लिया।
शासकीय प्रभाव: डोटी का कुमाऊँ से ऐतिहासिक-सांस्कृतिक बंधन टूट गया।
अंग्रेजों द्वारा अंग्लो–नेपाली युद्ध (1814–16) में गोरखा पर विजय के बाद भी डोटी भारत के अधीन नहीं लौटा।
सप्तम अध्याय: समकालीन विरासत एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान
- डोटी (नेपाल) एवं कुमाऊँ (उत्तराखंड) में उप्रैती एवं पपनै ब्राह्मण आज भी पुरोहित सेवा, वंशावली-आधारित सामाजिक पहचान तथा लोक-परंपराओं के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
- मंदिर-पुरोहित परम्परा
- जन्मस्थान-आधारित उपनाम (उप्रारा, पपनै)
- लोक-त्योहार व लोकगीतों में साझा धरोहर
- समापन:
- कत्यूरी साम्राज्य के वैदिक–ब्राह्मणीय आयाम से लेकर डोटी राज्य के रैका राजाओं द्वारा संरक्षित पुरोहित परंपराओं तक, उप्रैती ( पपनै )ब्राह्मण हिमालयी संस्कृति के संरक्षक रहे हैं। इनकी यात्राएँ एवं सेवाएँ 800 वर्षों तक हिमालयी राजनीति, धर्म व समाज को आकार देने में निर्णायक रहीं।
लेखक के बारे में
इस विषय के ऊपर जानकारी रक्षित पपनै के द्वारा डाली गई है जो उत्तराखंड के पाली गांव में निवास करते हैं और यह उत्तराखंड की संस्कृति को समय-समय पर अलग-अलग जगह प्रस्तुत करते रहते हैं
उत्तराखंड का इतिहास क्या है|(What is the history of Uttarakhand)