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    क्या प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है ?

    ByHimanshu Papnai

    Dec 29, 2024 #news
    क्या प्रस्तावना संविधान का हिस्सा हैक्या प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है

    हर कोई संविधान के बारे में जानकारी रखना चाहता है क्योंकि संविधान एक कानून है और हमारा देश संविधान से ही चलता है लेकिन क्या यह जानते हैं की प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है या नहीं।
    इसकी बहुत बड़ी कहानी है और आज हम आपको प्रस्तावना के ऊपर संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
    प्रस्तावना का मतलब होता है उद्देश्य से यानी आप उसे चीज को क्यों करना चाहते हैं आपका उस चीज को करने का मकसद क्या है। जब भी हम किसी किताब को लिखते हैं तो उसे किताब को लिखने का हमारा मकसद क्या है यह हम उसमें आवश्यक डालते हैं और जब हमने संविधान लिखा था तब भी हमने संविधान लिखने का मकसद क्या है यह भी लिखा गया है
    लेकिन क्या प्रस्तावना संविधान का का हिस्सा है या नहीं चलिए इसे जानते हैं। इसलिए आप इस आर्टिकल को जरूर पढ़ें

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    प्रस्तावना क्या है


    प्रस्तावना का मतलब उद्देश्य से होता है यानी आप किसी चीज को शुरू कर रहे हैं तो आपका उसे शुरू करने का मकसद क्या है इसी को कहा जाता है प्रस्तावना।

    क्या प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है


    आप जब भी कोई किताब लिखे तो आप उसमें प्रस्तावना डालते हैं कि आप उस किताब को क्यों लिख रहे हैं
    भारत का जब संविधान लिखा गया था तो उसमें भी प्रस्तावना डाला गया था कि आखिर हम भारत के संविधान को क्यों लिखना चाहते हैं हमारा मकसद क्या है भारत का संविधान भारत का कानून है और कानून के हिसाब से ही देश चलता है एक बहुत बड़ी चर्चा समय-समय पर निकली कि आखिर भारत का संविधान का प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है या नहीं । सुप्रीम कोर्ट में इस विषय के ऊपर चर्चा भी हुई और कई केस भी आए जिनमें से कुछ केसों के बारे में हम आपको जानकारी दे रहे हैं

    बेरुबारी केस


    बेरुबारी केस 1960 में शुरू होता है और इस केस में सुप्रीम कोर्ट कहता है की प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग नहीं है जब भारत आजाद हुआ तो भारत और पाकिस्तान दो देश बने और पश्चिम बंगाल में एक जगह बेरुबारी जिसे जाना जो का पाकिस्तान था लेकिन वह भारत में आ गया और आप जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री उस हिस्से को पाकिस्तान को सौंपने वाली थे लेकिन संविधान में यह कहीं नहीं लिखा गया था

    कि आप देश के किसी हिस्से को दूसरे देश को दे सकते हैं और प्रस्तावना इस को कहता है कि आप गणतंत्र की बात करता है सुप्रीम कोर्ट यह केस जाता है तो सुप्रीम कोर्ट कहता अःहै कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है यह तो सिर्फ संविधान लिखने वालों के विचारों को समझने के लिए उपयोग किया जाता है


    पाकिस्तान और भारत के बीच एक समझौता हुआ जिसे नेहरू नूर समझौता कहा जाता है इस समझौते से दो लोग नाखुश होते हैं पहले पश्चिम बंगाल सरकार और और पश्चिम बंगाल की जनता भी इससे खुश नहीं थी कैसे कोई देश का प्रधानमंत्री अपने क्षेत्र को किसी और देश के लिए दे सकती है


    आर्टिकल 3 के तहत आप किसी दूसरे देश के क्षेत्र को भारत मिल सकते हैं लेकिन संविधान में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि आप देश के किसी हिस्से को किसी दूसरे देश को देते हैं राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष चुके थे और संविधान उनके सामने ही बना था राजेंद्र प्रसाद जी को कहीं ना कहीं लग रहा था कि कुछ ना कुछ कमी रह गई है इसलिए उन्होंने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट को भेज दिया और आर्टिकल 143 के तहत राष्ट्रपति कानून को सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट परामर्श के लिए भेज दिया।

    पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1960 में संविधान में संशोधन किया और समझौते के अनुरूप अनुसूची एक में परिवर्तन किया गया और यह समझौता पूरा हुआ


    इसी से संबंधित एक और मामला 2015 का है जिसमें भारत सरकार ने सोमवार संविधान संशोधन अधिनियम करके भारत का कुछ विभाग बांग्लादेश को सोफा और बांग्लादेश का कुछ भूभाग अधिगृहित किया यह भारत और बांग्लादेश के बीच एक समझौते के तहत हुआ जिसमें भारत ने 101 विदेशी अंत: क्षेत्र को बांग्लादेश सौंप दिया और जबकि बांग्लादेश नेअंत: क्षेत्र को भारत को सौंप दिया यह करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत कुछ परिवर्तन संविधान में करने पड़े

    गोरखनाथ केस


    बेरुबारी केस के बाद गोरखनाथ केस आता है यह केस 1967 में आता है इस समय सरकार जिनके पास ज्यादा जमीन है उनकी जमीनों को ले रही थी तब गोरखनाथ के पास भी जमीन थी और उनकी जमीन को सरकार ले रही थी उसे समय संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार था और वह सुप्रीम कोर्ट चले गए तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा की प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग नहीं है

    केशवानंद भारती केस

    केशवानंद भारती केस 1973 में शुरू हुआ था इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था की प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है सांसद मौलिक अधिकारों में परिवर्तन तो कर सकती है लेकिन पहले प्रस्तावना को पढ़ ले यदि हमें लगता है कि किसी के मौलिक कर्तव्य पर खिलवाड़ हो रहा है तो हम उसे निरस्त कर देंगे और हम समय-समय पर इसकी जांच करते रहेंगे

    एस आर मुंबई केस


    यह 1994 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा आर्टिकल 356 के तहत मनमानी ढंग से सरकार बर्खास्त पर रोक लगा दी और इसमें भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है

    निष्कर्ष


    आज हमने आपको बताया की प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है या नहीं। हमने आपको बहुत ही सरल भाषा में बताया और केशवानंद भारती केस ,गोरखनाथ और बेरुबारी केस के बारे में संपूर्ण जानकारी दी वह भी सरल भाषा में यदि आप उनके बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो कमेंट करें और हमें ईमेल करें हम आपके लिए उनके बारे में संपूर्ण जानकारी लायेगे।

    Mysmarttips.in@gmail.com

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