राहु और मंगल की युक्ति से क्या प्रभाव होता है।(What is the effect of the conjunction of Rahu and Mars)

नमस्कार दोस्तों ! Best My Smart Tips Blog में आपका स्वागत है । ज्योतिष में  ग्रहों की युक्ति अपना अलग-अलग प्रभाव से पर दिखती है कई दोष उत्पन्न करते हैं तो कई अच्छा प्रभाव भी देते हैं देख यही जाता है की कौन सा ग्रह किस ग्रह के साथ बैठा है। अगर दो शत्रु ग्रह एक साथ किसी घर में बैठे हैं तो दो शत्रु ग्रह की कभी मित्रता नहीं होती है तो दोष उत्पन्न होता है वहीं अगर दो मित्र राशियां एक साथ बैठे है तो यह अच्छा परिणाम देखने को मिलता है। लेकिन जो भी देखा जाता है कि जिस स्थान पर यह बैठे हैं वहां किसकी राशि है अगर मित्र राशि है तो भी परिणाम अच्छा मिलता है और शत्रु राशि में बैठे हैं तो परिणाम थोड़ा खराब देखने को मिलता है 

अंकारक योग क्या होता है

वहीं अगर दो ग्रह की युक्ति है तो यह देखा जाता है की कौन ज्यादा डिग्री का है कौन ज्यादा प्रबल है उसका परिणाम ज्यादा देखने को मिलता है आज हम आपको एक ऐसे ही दोष के बारे में बताने जा रहे हैं जो कुंडली में होता है अंगारक योग ।

अंगारक योग कब बनता है जब मंगल राहु की युक्ति हो जाए या मंगल केतु की युक्ति हो जाए। अंगारक का मतलब होता है गुस्से से । । यानी कुंडली में किसी भी घर में राहु  और मंगल एक साथ बैठे हो या मंगल और केतु एक साथ बैठे हो । यह दोष कब ज्यादा प्रबल होता है इसे देखने के लिए आपको आपको कुंडली में यह देखना पड़ेगा कि यह दोस्त किस स्थान पर है यानी कि भाव पर है इसके बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे हमने पूरा आर्टिकल लिखा है पूरा आर्टिकल को पढ़े और अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें और कमेंट करके बताएं यह जानकारी लगी ।

आपके सामने 1 से लेकर 12 तक एक चार्ट बना हुआ है इस चार्ट को कुंडली कहते हैं ज्योतिष इसी कुंडली को देखा है आप आप यह देखिए की एक नंबर जहां पर लिखा है वहां पर आपकी कुंडली में कौन सा नंबर लिखा है । जिस नंबर से आपकी कुंडली शुरू होगी वह आपका लग्न होगा और एक से लेकर 12 तक जो नंबर लिखे हुए हैं उनके स्वामी अलग-अलग होते हैं

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आपको नीचे मैंने आपको इस विषय के ऊपर जानकारी दे रखी है कि अगर आपका अगर आपकी कुंडली 1 से लेकर 12 तक किसी भी नंबर से शुरू हो रही है तो आपका लग्न क्या होगा। 

1= मेष 

2=वृष

3= मिथुन

4= कर्क

5=सिहं

6= कन्या

7=तुला

8=वृश्चिक 

9=धनु

10= मकर

11=कुभं

12=मीन

कुंडली में राशि के स्वामी का क्या प्रभाव रहेगा

 हमारी कुंडली जो होती है उसमें उसमें 12 नंबर लिखे होते है हर नंबर के स्वामी अलग-अलग होते हैं हमारे ज्योतिष में 12 प्रकार की राशियां होती है और राशियों के स्वामी अलग-अलग होते हैं यानी आपका पहला घर एक नंबर से शुरू हो रहा है तो आपका मेष लग्न है और मेष लग्न के स्वामी मंगल है या अगर आपकी कुंडली पांच नंबर से शुरू हो रही है तो आपका लग्न सिंह  है और आपकी लग्न के स्वामी सूर्य है 1 से लेकर 12 तक जो नंबर बने हुए हैं उनके स्वामी कौन है उनके बारे में नीचे बता रखा है और इनका प्रभाव अलग-अलग होता है

1 =मेष राशि का स्वामी मंगल है

2=वृष राशि का स्वामी शुक्र है

3=मिथुन राशि का स्वामी बुध है

4=मिथुन राशि का स्वामी चंद्र है

5= सिंह राशि का स्वामी सूर्य है

6= कन्या राशि  के स्वामी बुध है

7=तुला राशि के स्वामी शुक्र है

8=वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल है

9=धनु  राशि के स्वामी शुक्र है

10=मकर राशि के स्वामी  स्वामी शनि है

11= कुभं  राशि के स्वामी शनि है

12=  मीन राशि के स्वामी गुरू है

चाहे आपकी किसी भी नंबर से शुरू हो रही हो कुंडली।1 से 12 तक जिस घर के स्वामी जो है उनके बारे में जानकारी ऊपर दे दी है 

मेरी राशि कौन सी है इसका पता कैसे लगे कुंडली से

इस बात का आपको याद रहे कि जहां पर चंद्रमा है वह आपकी राशि है मान लीजिए 1 कुंडली एक नंबर से शुरू हो रही है यानी मेरा मेष लग्न है और मेरी कुंडली में छह नंबर पर चंद्रमा बैठा है तो मेरी कन्या राशि होगी चंद्रमा जिस नंबर में बैठा होगा और वह नंबर जिस भी राशि को जिस भी राशि को दर्शाता होगा वही आपकी राशि होगी

कुंडली का शरीर में क्या प्रभाव पड़ता है

आपकी कुंडली किसी भी नंबर से शुरू हो रही हो लेकिन लग्न आपको पता चल गया है कि कैसे देखते हैं और लगन किस चीज को दर्शाता है कौन सा घर किस चीज को दर्शाता है इसके बारे में जानकारी नीचे बात रखी है

पहला घर( लग्न) शरीर को दर्शाता है

दूसरा घर धन को दर्शाता है

तीसरा घर भाई बहन को दर्शाता है

चौथा घर सुख को दर्शाता है

पांचवा घर विद्या बुद्धि को दर्शाता है

6  का घर शत्रु या यश को दर्शाता है

सातवा घर स्त्री या पति प्रभाव को दर्शाता है

आठवां घर आयु को दर्शाता है

नवां घर भाग्य  को दर्शाता है

दसवां घर कर्म को दर्शाता है

11वां घर शत्रुता या मित्रता को दर्शाता है

12 वा घर खर्च को दर्शाता है

ग्रहों की स्थिति

सूर्य = अपने स्थान में और अपने स्थान से सातवें स्थान में दृष्टि रखता है

मंगल=अपने स्थान में और अपने स्थान से सातवें स्थान और चौथा स्थान और आठवां स्थान में भी अपनी दृष्टि रखते हैं

केतु=अपने स्थान में और अपने स्थान से सातवें स्थान में दृष्टि रखता है

शुक्र=अपने स्थान में और अपने स्थान से सातवें स्थान में दृष्टि रखता है

शनि=अपने स्थान में और अपने स्थान से सातवें स्थान और तीन और दसवीं स्थान में भी दृष्टि रखते हैं

बुध=अपने स्थान में और अपने स्थान से सातवें स्थान में दृष्टि रखता है

 बृहस्पति= अपने स्थान में और अपने स्थान से सातवें स्थान पंचम तथा नवम स्थान को भी देखते हैं 

चंद्रमा= अपने स्थान में और अपने स्थान से सातवें स्थान में दृष्टि रखता है

 राहु=अपने स्थान में और अपने स्थान से सातवें स्थान में दृष्टि रखता है

कैसे पता करें ग्रह उच्च के हैं या नीचे केउच्च स्थान के ग्रह

सूर्य= पहले स्थान में उच्च का माना जाता है

मंगल = दसवे स्थान में उच्च का माना जाता है

 शुक्र = 12 वे  स्थान में उच्च का माना जाता है

शनि= सातवें नंबर में शनि उच्च का माना जाता है

बुध= छठे स्थान में उच्च के माने जाते हैं

चंद्रमा = दूसरे स्थान में उच्च के माने जाते हैं

नीच स्थान के ग्रह 

सूर्य= सातवें स्थान में नीच के माने जाते हैं

मंगल = दशम स्थान में नीच के माने जाते हैं

 शुक्र =  छठे  स्थान में नीच के माने जाते हैं

शनि= प्रथम स्थान में नीचे के माने जाते है

 बृहस्पति= दशम स्थान में नीच के माने जाते हैं

बुध= 12वे स्थान में नीचे के माने जाते हैं

चंद्रमा = आठवे स्थान में नीचे के माने जाते हैं

इस बात का आपको ध्यान रहे

कि अगर ग्रह अपनी मित्र राशि या स्वयं की राशि तो बहुत अच्छा परिणाम देंगे

लेकिन अगर शत्रु राशि में बैठे हैं तो फल अच्छे नहीं होंगे

कौन सा ग्रह कितनी डिग्री का है यह भी मायने रखता है उसी हिसाब से आपको परिणाम देखने को मिलते हैं

किसी एक ग्रह के कारण आप पूरी कुंडली का परिणाम नहीं  सकते है उसके लिए आपको समस्त ग्रहण के बारे में जानकारी होनी चाहिए कौन कितनी डिग्री का है शत्रु राशि में तो नहीं बैठा है। 

जब आप अपनी कुंडली बना रहे हो तो आपको अपनी जन्मतिथि और समय और स्थान का पता होना चाहिए और जन्म स्थान का भी आपको पता होना चाहिए

आंगरक दोष क्या होता है

आंगरक दोष तब बनता है जब मंगल और केतु की युति हो या मंगल राहु की युक्ति हो तो यह दोष बनता है आंगरक का मतलब होता है गुस्सा यह दोष लग्न में हो जाये ऐसे व्यक्ति गुस्से से भरा हुआ होगा।

आपको इस बात का ख्याल रखना है कि यह दोष कि घर में बन रहा है क्योंकि यह दोस्त किसी घर में ज्यादा प्रभाव दिखाता है तो किसी घर में कम प्रभाव दिखाता है

यदि अंकारक योग लग्न में हो

यदि अंकारक योग लग्न में होगा तो ऐसा व्यक्ति गुस्से से भरा होता है क्योंकि लग्न आपके शरीर को दर्शाता है

दूतीय भाव में यदि अंकारक योग हो

द्वितीय  भाव धन से संबंधित होता है अगर द्वितीय भाव में अंकारक योग हो जाए तो ऐसी व्यक्ति के जीवन में आर्थिक स्थिति का उतार  चढ़व  ना रहता है

तृतीय भाव में अंकारक योग

तृतीय भाव में यदि अंकारक योग हो क्योंकि यह भाई बहन का घर है इसलिए भाई बहन से हमेशा रिश्ते खराब रहते  हैं

चतुर्थ भाव में अंकारक योग

और यदि चतुर्थ भाव में अंकारक योग हो तो ऐसा व्यक्ति के माता को दुख प्राप्त होता है

यदि पंचम भाव में अंकारक योग

यदि पंचम भाव में अंकारक योग होगा  तो ऐसा व्यक्ति जुआ से अच्छा पैसा कमाता है।

छठे घर में अंकारक योग हो तो

यदि छठे भाव में अंकारक योग होगा तो ऐसा व्यक्ति कर्ज के माध्यम से पैसा लगा और लाभ तक पहुंचेगा

सप्तम भाव में अंकारक योग 

यह घर पत्नी का घर होता है यदि इस घर में तुम घर कारक योग है तो ऐसा व्यक्ति पत्नी से दुखी हो सकता है यह पारिवारिक संबंध में कुछ परेशानी आ सकती है

आठवें भाव में अंकारक योग

आठवें भाव में यदि अंकारक योग है तो ऐसी व्यक्ति को पैतृक संपत्ति मिलती है लेकिन लाभ नहीं करती बर्बाद कर देती है

यदि 9 भाव में अंकारक योग हो तो

यदि 9 भाव में अंकारक योग है तो ऐसा व्यक्ति भाग्यहीन और तंत्र-मंत्र में लिप्त होता है और यदि शुभ राशि और शुभ नक्षत्र में यह दोष हो जाए तो वह जीवन चमका देता है

दशम भाव में अंकारक योग

दशम भाव कर्मभाव होता है यदि इस घर में अंकारक योग हो जाए तू ऐसा व्यक्ति बहुत ही मेहनती होता है और बहुत ही सफल होता है अपने जीवन में

एकादश भाव में अंकारक योग

यदि एकादश भाव में अंकारक  हो जाए तो ऐसा व्यक्ति कपट, धोखेबाज होता है और पैसा कमाता है

बारवे भाव में अंकारक योग

यदि 12 वे भाव में अंकारक योग हो जाए तो ऐसा व्यक्ति रिश्वत के माध्यम से बहुत अच्छा पैसा कमाता है

 अंकारक योग को कम कैसे करें

आपकी कुंडली में अगर अंकारक योग है तो वह हमेशा रहेगा उसे पूरी तरीके से नहीं हटाया जा सकता लेकिन इसका प्रभाव काम किया जा सकता है।

सबसे पहले आपको अपनी कुंडली में यह देखना है की अंकारक योग यानी केतु या मंगल और या केतु या राहु एक साथ बैठे हैं तो अंकारक योग आपकी कुंडली में है लेकिन किस भाव में बैठे हैं यह पता लगाये

उसके बाद आपको यह देखना है कि कौन काम डिग्री का है आप उसे ग्रह की शांति करवा दे तो उसे अंगारों के योग का प्रभाव कम पड़ेगा और यदि कोई 0 डिग्री का ग्रह युक्ति बनकर बैठा है तो वह ज्यादा प्रभाव नहीं देगा क्योंकि ऐसा ग्रह शून्य डिग्री का है

निष्कर्ष

उम्मीद करता हूं आपको हमारे द्वारा बताई गई जानकारी समझ में आ गई होगी यदि आपके पास कोई सवाल तो आप कमेंट करके पूछ सकते हैं और हमारी इस आर्टिकल को अधिक से अधिक लोग को शेयर करें ताकि हर किसी को इसके बारे में जानकारी मिल सके आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट करके अवश्य बताएं और यदि किसी के ऊपर जानकारी चाहिए तो ईमेल हमें करें

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