• December 2, 2025 11:13 pm

    उत्तराखंड राज्य गीत — सिर्फ संगीत नहीं, पहचान की आवाज

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    उत्तराखंड, जो प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य, आध्यात्मिक धरोहर और गौरवशाली इतिहास से भरा राज्य है, आज आधुनिकता के दौर में अपनी सांस्कृतिक पहचान के सामने चुनौतियों का सामना कर रहा है। तेजी से बदलती जीवनशैली, तकनीक का बढ़ता प्रभाव और वैश्वीकरण ने युवा पीढ़ी को दुनिया से जोड़ा है, लेकिन साथ ही यह अपने स्थानीय मूल्यों और परंपराओं से दूरी भी बना रहा है।

    इन्हीं परिवर्तनों को देखते हुए यह चिंता उठी:
    “क्या हमारी नई पीढ़ी अपने राज्य का गीत, संस्कृति और पहचान को समझ पा रही है?”

    इसी सवाल को गंभीरता से महसूस कर मैंने—
    हिमांशु पपनै, उत्तराखंड राज्य गीत को स्कूलों और राजकीय कार्यक्रमों में अनिवार्य किए जाने की औपचारिक माँग उठाई।
    यह माँग सिर्फ एक प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक अस्मिता को सुरक्षित रखने का मिशन है।

    ⭐ उत्तराखंड राज्य गीत — सिर्फ संगीत नहीं, पहचान की आवाज

    राज्य गीत किसी भी प्रदेश की भावनात्मक एकता का प्रतीक होता है।
    जिस तरह राष्ट्रगान देश की पहचान है,
    उसी तरह राज्य गीत राज्य की आत्मा होता है।

    उत्तराखंड राज्य गीत हमारी प्रकृति, देवभूमि, वीरों, पहाड़ों, लोककला, मातृभूमि और परंपरा को अभिव्यक्त करता है।

    राज्य गीत की दो पंक्तियाँ

    उत्तराखंड देवभूमि-मातृभूमि
    शत्-शत् वंदन अभ‍िनंदन
    दर्शन, संस्कृति, धर्म, साधना
    श्रम रंजित तेरा कण-कण.
    अभ‍िनंदन अभ‍िनंदन
    उत्तराखंड देवभूमि….

    गंगा-यमुना तेरा आंचल
    दिव्य हिमालय तेरा शीश
    सब धर्मों की छाया तुझ पर
    चार धाम देते आश‍िष
    श्री बदरी, केदारनाथ हैं
    श्री बदरी, केदारनाथ हैं
    कलियर, हिमकुंड अति पावन.
    अभ‍िनंदन अभ‍िनंदन
    उत्तराखंड देवभूमि….

    इन दो पंक्तियों में ही पूरा उत्तराखंड समाया हुआ है।

    क्यों जरूरी है राज्य गीत को अनिवार्य बनाना

    नीचे मैं बिंदुवार गहराई से बता रहा हूँ कि राज्य गीत को अनिवार्य करना क्यों समय की सबसे बड़ी जरूरत है।

    1. सांस्कृतिक संरक्षण (Cultural Preservation)

    उत्तराखंड की संस्कृति सदियों पुरानी है—गढ़वाली, कुमाऊँनी, जौनसारी, भोटिया जैसी विविध शैलियाँ हमारी पहचान हैं।
    लेकिन दुख की बात यह है कि आज बच्चों को इन परंपराओं का ज्ञान बेहद कम है।

    राज्य गीत:

    ✔ उन्हें अपनी भाषा और लोकधरोहर से जोड़ता है
    ✔ सांस्कृतिक मूल्यों का बोध कराता है
    ✔ उन्हें अपनी जड़ों से परिचित कराता है
    ✔ उत्तराखंड की एकता को मजबूत करता है

    अगर आज हमने संस्कृति को संरक्षित नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियाँ इसे सिर्फ किताबों में पढ़ेंगी।

    1. शिक्षा में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का संवर्धन

    विद्यालय सिर्फ पढ़ाई का स्थान नहीं, बल्कि संस्कृति और मूल्यों की शिक्षा देने का केंद्र है।
    राज्य गीत को प्रार्थना सभा में गाने से बच्चों में:

    अनुशासन

    देशभक्ति

    राज्य के प्रति सम्मान

    सामूहिक एकता

    भावनात्मक जुड़ाव

    इन सभी का विकास होता है।

    यह सिर्फ एक गीत नहीं—
    यह चरित्र निर्माण की प्रक्रिया है।

    1. बच्चों में उत्तराखंड की पहचान विकसित करना

    आज के बच्चे मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से दुनिया को जानते हैं।
    लेकिन अपने राज्य के इतिहास, भूगोल, वीरों, पर्वों, परंपराओं के बारे में उतनी जानकारी नहीं है।

    यदि वे प्रतिदिन राज्य गीत सुनेंगे और गाएँगे तो—

    ✔ राज्य से भावनात्मक जुड़ाव बढ़ेगा
    ✔ पहाड़ों, नदियों, देवस्थलों और संस्कृति के प्रति प्रेम जगेगा
    ✔ स्थानीय पहचान मजबूत होगी

    राज्य गीत यह समझाता है कि —
    हम कौन हैं, कहाँ से आए हैं और किस संस्कृति से जुड़े हैं।

    1. राजकीय कार्यक्रमों की गरिमा और मर्यादा बढ़ाता है

    कई राज्यों में राज्य गीत का अत्यधिक सम्मान होता है।
    जैसे महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल आदि में कार्यक्रम राज्य गीत से शुरू होते हैं।

    उत्तराखंड में यह परंपरा अभी कमजोर है।
    यदि राज्य गीत अनिवार्य हो जाएगा तो—

    हर कार्यक्रम गरिमामयी होगा

    राज्य की पहचान दर्शाएगा

    एक समान प्रोटोकॉल बनेगा

    सांस्कृतिक एकता बढ़ेगी

    1. उत्तराखंड के वीर बलिदानियों का सम्मान

    हमारा राज्य वीरों की भूमि है
    कारगिल के शहीद, सेना के बहादुर जवान, पुलिस बल और आपदा में जान देने वाले नायक।

    राज्य गीत में इन वीरों की छवि झलकती है।
    जब बच्चे राज्य गीत गाते हैं तो उनके मन में इन बलिदानियों के लिए सम्मान बढ़ता है।

    1. एकता और सामूहिक चेतना का निर्माण

    उत्तराखंड में विभिन्न क्षेत्र, भाषाएँ, बोलियाँ, संस्कृतियाँ हैं।
    लेकिन राज्य गीत सबको एक सूत्र में पिरो देता है—
    सबको “उत्तराखंडी” होने का एहसास कराता है।

    मेरी पहल — क्यों उठाई यह जिम्मेदारी?

    मैंने यह देखा कि—

    कई स्कूलों में राज्य गीत का कोई अभ्यास नहीं था

    कई शिक्षकों को राज्य गीत की जानकारी ही नहीं

    राजकीय कार्यक्रमों में भी राज्य गीत की उपेक्षा थी

    युवा पीढ़ी राज्य गीत से परिचित नहीं थी

    यह बिल्कुल चिंताजनक स्थिति थी।

    इसी कारण मैंने जागरूक नागरिक के रूप में औपचारिक शिकायत करके प्रशासन को लिखा कि:

    ✔ राज्य गीत सभी विद्यालयों में अनिवार्य हो
    ✔ मासिक सांस्कृतिक गतिविधियों में अभ्यास हो
    ✔ डिजिटल माध्यमों पर राज्य गीत का प्रचार हो
    ✔ शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाए
    ✔ जिला स्तर पर निरीक्षण सुनिश्चित किया जाए

    प्रशासन ने मेरी मांग को गंभीरता से लिया और आदेश भी जारी किए।
    यह राज्य के लिए एक ऐतिहासिक कदम है।


    डिजिटल मीडिया पर राज्य गीत के प्रचार की आवश्यकता

    आज की दुनिया डिजिटल हो चुकी है।
    अगर हम चाहते हैं कि राज्य गीत दुनिया तक पहुँचे,
    तो हमें चाहिए—

    सोशल मीडिया कैंपेन

    यूट्यूब में आधिकारिक वीडियो

    इंस्टाग्राम रील्स

    फेसबुक अभियान

    विद्यालयों द्वारा डिजिटल पोस्टिंग

    राजकीय कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण

    युवाओं तक पहुंच का सबसे प्रभावी माध्यम डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ही है।

    क्या राज्य गीत से पर्यटन को भी लाभ मिलेगा?

    हाँ, बिल्कुल मिलेगा।

    क्योंकि राज्य गीत:

    ✔ उत्तराखंड की पहचान बताता है
    ✔ पहाड़ों की आत्मा को दर्शाता है
    ✔ देवभूमि का स्वर प्रस्तुत करता है

    पर्यटक जब राज्य गीत सुनते हैं,
    तो उनके मन में उत्तराखंड के प्रति भावनात्मक जुड़ाव पैदा होता है।

    राज्य गीत को अनिवार्य करने के बाद संभावित प्रभाव

    1. स्कूलों में अनुशासन और गरिमा बढ़ेगी
    2. छात्रों में राज्य के प्रति गर्व विकसित होगा
    3. शिक्षण संस्थानों में सांस्कृतिक वातावरण बनेगा
    4. सरकारी कार्यक्रमों की गुणवत्ता बढ़ेगी
    5. सांस्कृतिक वैचारिक एकता बनेगी
    6. नई पीढ़ी अपनी परंपरा और जड़ों से जुड़ेगी

    यह केवल गीत नहीं—
    यह उत्तराखंड को एक “सांस्कृतिक पहचान” देने का प्रयास है।

    समापन — मेरी संस्कृति, मेरा उत्तरदायित्

    उत्तराखंड की संस्कृति बेहद समृद्ध है लेकिन समृद्धि तभी तक है जब तक हम इसे जीवित रखें।
    मैं, हिमांशु पपनै, इस सांस्कृतिक अभियान का हिस्सा बनकर गर्व महसूस करता हूँ।

    यह प्रयास मेरी व्यक्तिगत पहल नहीं बल्किउत्तराखंड की आत्मा को बचाने की लड़ाई है।

    राज्य गीत को अनिवार्य बनाने के बाद हर बच्चे, हर विद्यालय, हर कार्यक्रम और हर नागरिक में
    उत्तराखंड की पहचान का भाव और भी प्रबल होगा।

    मैं आगे भी इस पहल के लिए कार्य करता रहूँगा क्योंकि यह सिर्फ मुद्दा नहीं,
    मेरे उत्तराखंड का सम्मान है।

    निष्कर्ष

    उत्तराखंड सिर्फ एक भूगोल नहीं, बल्कि भावनाओं, परंपराओं, विश्वास, लोककला और प्रकृति का जीवंत स्वरूप है। हमारी पहचान उन पहाड़ों में है जिनकी तलहटी में हमने बचपन बिताया, उन नदियों में है जो हमें जीवन देती हैं, उन लोकगीतों में है जो हमारी आत्मा को जोड़ते हैं, और उन वीरों में है जिनके साहस ने इस राज्य की गरिमा बढ़ाई है।

    इन्हीं भावनाओं को एक स्वर में बाँधने का काम उत्तराखंड राज्य गीत करता है। यह गीत सिर्फ धुन नहीं—यह समूह चेतना, सांस्कृतिक एकता और राज्य की आत्मा है।

    आज जब नई पीढ़ी आधुनिक तकनीक से दुनिया से जुड़ रही है, तब हमारी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि हम उसे अपनी मूल पहचान से भी जोड़ें। राज्य गीत को विद्यालयों और सरकारी कार्यक्रमों में अनिवार्य करने का उद्देश्य यही है कि हमारी संस्कृति सिर्फ पुस्तकों, फाइलों या सरकारी आदेशों तक सीमित न रहे—बल्कि हर सुबह हर बच्चे के हृदय में गूंजे।

    मेरी (हिमांशु पपनै की) इस पहल का असली मकसद यही है कि—
    उत्तराखंड अपने गीत, अपनी संस्कृति और अपनी पहचान को आने वाली पीढ़ियों तक गर्व और सम्मान के साथ पहुँचाए।

    राज्य गीत के अनिवार्य होने से न केवल बच्चों में राज्य के प्रति गर्व बढ़ेगा, बल्कि एक ऐसी पीढ़ी तैयार होगी जो अपनी जड़ों को समझती हो, अपने पहाड़ों से प्रेम करती हो, और अपनी मातृभूमि के प्रति भावनात्मक रूप से जुड़ी हो।

    आज की यह पहल कल की सांस्कृतिक विरासत बन सकती है।
    और यही उत्तराखंड की असली शक्ति है—उसकी संस्कृति, उसकी एकता, उसकी पहचान।

    अंत में, यह याद रखना होगा कि—
    संस्कृति को बचाना सरकार का ही काम नहीं, यह हर उत्तराखंडी का कर्तव्य है।
    अगर राज्य गीत हर दिल में गूंजेगा,
    तो उत्तराखंड हमेशा एकजुट, जागरूक, मजबूत और गौरवशाली बना रहेगा।

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