21 नवंबर 1963 केरल के तट पर बस एक छोटे से गांव कुंबा में अचानक आसमान चीरता हुआ एक रॉकेट ऊपर उठना है चले जाते हैं और बच्चे जोर-जोर से तालियां बजाने लगते हैं ये भारत का पहला साउंडिंग रॉकेट नई की अपाचे था जो आसमान की ओर उड़ान भरकर भारत में एक नई क्रांति का बिल्कुल बचा रहा था यह लॉन्च सिर्फ एक टेक्निकल अचीवमेंट नहीं था वैज्ञानिक ने देखा था यह विजनरी साइंटिस्ट कोई और नहीं बल्कि डॉक्टर विक्रम साराभाई थे जिन्हें फादर ऑफ द इंडियन स्पेस प्रोग्राम कहा जाता है भारतीय अखबार छाप रहे थे वे नीड राइस नोट रॉकेट लेकिन विक्रम साराभाई का विजन था कि अगर भारत गरीब है तो हमें स्पेस टेक्नोलॉजी में और इन्वेस्ट करना चाहिए क्योंकि यही टेक्नोलॉजी देश की असली समस्याओं को हल कर सकती है उन्होंनेसैटेलाइट को कम्युनिकेशन वेदर फोरकास्टिंग एग्रीकल्चर और एजुकेशन से जोड़कर साबित करके दिखाया कि नहीं बल्कि भलाई के लिए भी है

भारत को स्पेस प्रोग्राम में आत्मनिर्भर बनाया बल्कि उन्होंने साइंस रिसर्च और मैनेजमेंट के ऐसे कई प्रेस्टीजियस इंस्टिट्यूट बने जिन्होंने एक पिछड़े और कई समस्याओं से जूझ रहे इंडिया के लिए तरक्की के नए दरवाजे खोल दिए उनमें देश प्रेम की भावना इतनी पर्सनल वेल्थ को भी देश के विकास के कामों में लगा दिया था और इंडिया को स्पेस में एस्टेब्लिश करने के लिए जीवन भर केवल ₹1 की टोकन सैलरी पर काम करना स्वीकार किया था उनका इतना ऊंचा था कि डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महान शक्ति उन्हें अपना गुरु मानते थे तो आईए जानते हैं डॉ विक्रम साराभाई की पूरी कहानी कैसे उन्होंने अपनी 52 साल की छोटी सी जिंदगी में भारत को चांद पर ले जाने की नींव रखी
विक्रम साराभाई के जीवन के बारे
विक्रम अंबालाल साराभाई का जन्म 12 अगस्त को गुजरात के अहमदाबाद में एक अमीर इंडस्ट्रियलिस्ट फैमिली में हुआ था उनके पिता अंबालाल साराभाई कपड़ों के बड़े व्यापारी थे और पूरे गुजरात में उनकी कई टेक्सटाइल मिल थी उसे समय भारत गुलामी की जंजीरों में झगड़ा हुआ था जलियांवाला बाग जैसे भयानक हत्याकांड के बाद देश की आजादी की लड़ाई और भी तेज हो गई थी महात्मा गांधी के नेतृत्व में नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट का बिल्कुल भूख जा चुका था और देश के बड़े-बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट भी इस लड़ाई में कूद पड़े थे इन्हीं में एक नाम विक्रम साराभाई के पिता उन्होंने न सिर्फ फ्रीडम मूवमेंट में हिस्सा लिया बल्कि फ्रीडम फाइटर्स को हर संभव आर्थिक मदद भी यही वजह थी
कि विक्रम साराभाई के पिता के घर उसे समय की कई महान हस्तियों का आना जाना रहता था रविंद्र नाथ टैगोर महात्मा गांधी जय कृष्ण मूर्ति लाल नेहरू जवाहरलाल नेहरू सरोजिनी नायडू मौलाना आजाद रविंद्र नाथ टैगोर उनके घर आए हुए थे रविंद्र नाथ टैगोर उसकी जिंदगी की भविष्यवाणी रविंद्र नाथ टैगोर से अपने कुछ महीने पहले जन्मे बेटे का फ्यूचर बताने की गुजारिश करते हैं रवींद्रनाथ टैगोर ने विक्रम साराभाई के चौड़े और असामान्य माथे को गौर से देखा और मुस्कुराते हुए कहा कि यह बच्चा एक दिन बहुत बड़े-बड़े काम करेगा की पढ़ाई पूरी की इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड केकैमरे यूनिवर्सिटी जाकर अपनी हायर स्टडीज पूरी करने का फैसला किया कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उनके एडमिशन प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए रविंद्र नाथ टैगोर ने उनके लिए एक रिकमेंडेशन लेटर लिखा था इस तरह वह इंग्लैंड पहुंच गए और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के सेंट जॉन’ कॉलेज में पढ़ने लगे यहीं से उन्होंने साल 1940 में नेचुरल साइंस में ट्राई फोर्स पूरा किया बचपन से ही विक्रम साराभाई का साइन से खास लगाव था जो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में नेचुरल साइंसेज की पढ़ाई करते हुए एक ऑप्शन बन गया इसके बाद पीएचडी की पढ़ाई करने लगे लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वह इंग्लैंड नहीं जा सके तो यूनिवर्सिटी नेयूनिवर्सिटी ने इस शर्त पर हां कर दिए कि आप भारत में अपनी एचडी और अपनी थीसिस नोबेल प्राइज सीवी रमन की देखरेख में करनी होगी।
नोबेल प्राइज विनर यूनिवर्सिटी की पढ़ाई करने लगे इसी दौरान वह कुछ दिन के लिए भारत छुट्टी पर आए लेकिन वर्ल्ड वॉर 2 के भयंकर रूप लेने के कारण वापस इंग्लैंड नहीं जा सके विक्रम साराभाई ने यूनिवर्सिटी से इंडिया में रहकर ही अपनी रिसर्च करने की परमिशन मांगी यूनिवर्सिटी ने इस शर्त पर हां कर दिए कि उन्हें अपनी थीसिस नोबेल प्राइज विनर फिजिक्स सीवी रमन की देखरेख में करनी होगी उसे समय व रमन इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस इस्क में फिजिक्स की प्रोफेसर थे एसएमएस विक्रम साराभाई रिसर्च करने लगे उसे समय आईएससी के कॉस्मिक के डिपार्टमेंट को भारत के एक और महान फिजिसिस्ट और न्यूक्लियर साइंटिस्ट होमी भाभा लेट कर रहे थे

ऐसे में होमी भाभा और विक्रम साराभाई का अक्सर मिलना जुलना होने लगा क्योंकि दोनों का बड़ा इंटरेस्ट था इसलिए जल्दी ही दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई व रमन और होमी भाभा जैसे की नजदीकियों ने विक्रम साराभाई को काफी निखार और इसका नतीजा यह हुआ की 1942 में उनकापहले साइंटिफिक पेपर टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ़ कॉस्मिक रेस प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द इंडियन एकेडमी ऑफ़ साइंसेज में पब्लिश हुआ इसे खुद डॉक्टर सीवी रमन ने इंट्रोड्यूस करते हुए कहा भले ही विक्रम एक रिच फैमिली से आते हैं लेकिन आज यहां सिर्फ एक प्रिविलेज बैकग्राउंड के कारण नहीं खड़े हैं उन्होंने अपने दम पर ओरिजिनल एक्सपेरिमेंट किया है और अपने रिसर्च के जरिए साइंस की दुनिया में कदम रखा है मुझे पूरा विश्वास है कि उनकी प्रतिभा और डेडीकेशन एक दिन हमारे देश में साइंटिफिक ग्रंथ में महत्वपूर्ण साबित होगी इतने महान साइंटिस्ट से इस तरह का अप्रिशिएसन मिलना अपने आप में एक बड़ी बात थी और यह उनकी प्रतिभा का दुनिया के सामने पहले परिचय था विक्रम साराभाई एक ब्रिलिएंट साइंटिस्ट होने के साथ-साथ एक आशिक मिजाज और जिंदा दिल इंसान भी थे इस्क में रिसर्च के दौरान हुए क्लासिकल डांसर एमआरएनएलआई से प्यार करने लगे कहा जाता हैऔर उनके पास हमेशा सभी तरह के गानों का एक बेहतरीन कलेक्शन मौजूद रहता था करोड़पति होने के बावजूद उन्होंने अपने इंगेजमेंट पर प्रणाली को फिरोजी की एक सिंपल तिब्बती अंगूठी गिफ्ट की शादी के दिन उन्होंने के पास कॉपर की ट्रे पर बहुत ही दुर्लभ नीले रंग का कमल का फूल बिछाया था इसे याद करते हुए अक्सर कहा करती थी
कि किसी से प्यार जताने का इससे सुंदर तरीका और हो ही नहीं सकता 3 सितंबर 1942 को दोनों शादी के बंधन में बंद करें और आगे चलकर उन्हें दो बच्चे हुए विक्रम साराभाई की एचडी की ज्यादातर रिसर्च भारत में ही हुई लेकिन डिग्री पूरी करने के लिए उनका कैंब्रिज वापस लौटना जरूरी था इसलिए वर्ल्ड वॉर 2 खत्म होते ही वह 1945 में कांग्रेस लौट जाते हैं वहां वह कॉस्मिकरी इन्वेस्टिगेशन एंड ट्रॉपिकल लट्टीट्यूड पर अपनी एचडी पूरी करते हैं और नवंबर 1947 में वापस भारत लौट आते हैं लेकिन तब तक देश में एक बड़ा बदलाव आ चुका था उनकेइंग्लैंड से लौट के 3 महीने पहले ही भारत आजाद हो चुका था आजादी वाले ही मिल गई थी

लेकिन लगभग 200 सालों तक गुलामी की वीडियो में चढ़े रहने के कारण भारत हर फील्ड में पिछड़ा हुआ था इंडस्ट्री और टेक्नोलॉजी के मामले में तो हाल और भी बुरा था ऐसे में विक्रम साराभाई देश को साइंस टेक्नोलॉजी रिसर्च और मैनेजमेंट के फील्ड में आगे बढ़ाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित करने का फैसला करते हैं वह सबसे पहले अपने पेरेंट्स की मदद से अहमदाबाद में फिजिकल रिसर्च लैबोरेट्री पर्ल की स्थापना करते हैं यही पर्ल आगे चलकर देश में स्पेस रिसर्च की जन्मभूमि बनी इसके बाद वह अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्री रिसर्च एसोसिएशन अत्री एस्टेब्लिश करते हैं ताकि टेक्सटाइल इंडस्ट्री में रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ावा मिल सके यही से देश में साइंस कलर रिसर्च एंड डेवलपमेंट और यंग साइंटिस्ट की ट्रेनिंग की जमीन तैयार होनी शुरू हो जाती है जिसे अगले कुछ सालों में देश को साइंस इन बिजनेस में एक नई दिशा देकर भारत को आत्मनिर्भर बनाने की राह दिखाएं साल 1950 में विक्रम सरभाई के पिता अंबालाल साराभाई ने उन्हें सारा भाई केमिकल्स का अध्यक्ष बना दिया इसके चलते बड़ौदा जाना पड़ता था

लेकिन रिसर्च उनका पहला प्यार था इसलिए सफर के दौरान भी वह अपना काम रोकने नहीं थे जब भी वह ट्रैवल करते फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी के किसी स्टूडेंट को हमेशा अपने साथ रखते ताकि रास्ते में भी डिस्कशन और एक्सपेरिमेंट पर प्रेस वार्मिंग जारी रह सके उसे वक्त इंडिया में फॉर्मल मैनेजमेंट एजुकेशन जैसी कोई चीज मौजूद नहीं थी टेक्नोलॉजी देश को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं ठीक वैसे ही मैनेजमेंट एजुकेशन देश की इकोनामिक ग्रोथ के लिए बेहद जरूरी है इसी सोच के साथ उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से नेशनल लेवल का मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट बनाने की बात की गवर्नमेंट ने 1957 में इस और ध्यान दिया और एक नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट एस्टेब्लिश करने के ऐलान किया इसके लिए दो समिति बनाई गई जिनका काम सरकार को यह रिकमेंड करना था कि इंस्टिट्यूट देश के किस सिटी में बनाया जाएऔर यूनियन गवर्नमेंट और महाराष्ट्र गवर्नमेंट में सहमतिनहीं बन सके यूनियन गवर्नमेंट के सामने इस मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट को अहमदाबाद में खोलने का प्रस्ताव रखा उन्होंने गुजरात के तत्कालीन सीएम डॉक्टर जीवराज मेहता को इसके लिए जमीन देने के लिए भी मान लिया काफी समय बर्बाद हुआ आखिरकार यूनियन गवर्नमेंट ने देश में एक साथ दो एम्स खोलने का फैसला लिया जिनमें से एक अहमदाबाद में और दूसरा कोलकाता में खोला जाना था इसके बाद नवंबर 1961 में आईआईएम कोलकाता और दिसंबर 1961 में आईआईएम अहमदाबाद की एस्टेब्लिशमेंट होती है और विक्रम साराभाई आईआईएम अहमदाबाद के पार्ट टाइम डायरेक्टर बनाए जाते हैं इसी दौरान विक्रम साराभाई का नाम एक और बच्चों से सुर्खियों में आता है
शादीशुदा होने के बावजूद उनके कई सालों से कमल चौधरी नाम के महिला से एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर था इस अफेयर को उन्होंने कभी दुनिया से नहीं छुपाया लेकिन जब इस एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के काफी चर्चा होने लगे तो कमल चौधरी इस लिफ्ट ट्रायंगल से तंग आने लगी वह समय विक्रम साराभाई द्वारा बनाई गई आईटीआई मेंनौकरी कर रही थी और विक्रम साराभाई से दूर जाने के लिए एक दूसरी नौकरी का ऑफर एक्सेप्ट कर दिल्ली जाना चाहती थी लेकिन विक्रम साराभाई कमल को अपने करीब रखना चाहते थे

इसलिए उन्हें दिल्ली जाने से रोकने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे थे पहले उन्होंने कमल को फिजिकल रिसर्च लैबोरेट्री की डायरेक्टरशिप ऑफर की लेकिन जब इतने पर भी कमल नहीं मानी तो उन्होंने आईआईएम को अहमदाबाद लाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया और जब अहमदाबाद में आईआईएम एस्टेब्लिश हुआ तो उसके पास टाइम डायरेक्टर बने वहीं उनके कहने पर कमल चौधरी इसकी पहली रिसर्च डायरेक्टर बनाई गई कमल चौधरी के भतीजे सुधीर कक्कड़ ने बाद में अपनी किताब ए बुक ऑफ़ मेमोरी में लिखा कि विक्रम साराभाई ने आईआईएम को अहमदाबाद लाने के लिए इतनी मशक्कत इतनी मोहब्बत कमल चौधरी के लिए ही की थी लेकिन बाद में विक्रम साराभाई की बेटी इस बात पर सफाई देते हुए कहा कि भले ही पापा का कमल चौधरी से अफेयर था लेकिन यह कहना कि वह सिर्फ अपने प्यार के लिए आईआईएम को अहमदाबाद में लेकर आए उनके कंट्रीब्यूशन और मिशन के प्रति अन्याय होगातब तक हमारे को सोवियत यूनियन के बीच स्पेस रेस भी तेजी पर थी
सोवियत स्पूतनिक वन और अमेरिका एक्सप्लोरर वन के रूप में अपनी अपनी पहली सैटेलाइट स्पेस में भेज चुके थे विक्रम साराभाई को भी काफी प्रभावित किया वह समझते थे कि स्पेस टेक्नोलॉजी भविष्य की चाबी है और भारत इसके बिना पीछे रह जाएगा उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने एक मिशनरी आइडिया रखकर इसे आगे बढ़ाने की परमिशन मांगी उसे समय भारत गरीबी भुखमरी और लिटरेसी जैसी कई चुनौतियों से जूझ रहा था कि भारत गरीब है इसलिए उसे स्पेस टेक्नोलॉजी में और भी ज्यादा इन्वेस्ट करना चाहिए उनका तर्क साफ था की सेटेलाइट से कम्युनिकेशन बेहतर होगा एजुकेशन को दूर दराज के लाखों तक पहुंचा जा सकेगा मौसम का सटीक अनुमान मिलेगा और इससे किसानों की भी सीधे तौर पर मदद होगी और न्यूक्लियर साइंटिस्ट और उनके मित्र डॉक्टर होमी भाभाने पूरा समर्थन दिया उसे समय होमी भाभा डिपार्मेंट आफ एटॉमिक एनर्जी डिपार्मेंट आफ एटॉमिक एनर्जी के अंदर ही इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च यानी इनको उसे पर की स्थापना करते हैं और वह इसके पहले अध्यक्ष भी बनते हैं इस तरह विक्रम साराभाई ने इंडिया का स्पेस रोड मैप को तैयार कर लिया था लेकिन अब इसे आगे बढ़ाने के लिए रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन की जरूरत थी रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन तैयार करने के लिए उन्हें एक ऐसी समुद्री और आइसोलेटेड जगह चाहिए और साइंटिफिक एक्सपेरीमेंट्स के लिए सबसे परफेक्ट मानी जाती है उन्होंने यह जिम्मेदारी अपने स्टूडेंट ने पूरे साउथ इंडिया का दौरा कर 200 जगह की एक लिस्ट बनाई और साराभाई को सौंप दिए उन्होंने होमी भाभा के साथ मिलकर इन दोनों साइड का अच्छे से निरीक्षण कियाऔर अंत में रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन के लिए केरल के थुंबा वाली साइट को चुना मैग्नेटिक इक्वेटर के बिल्कुल पास लोकेटेड है और एयरपोर्ट भी इसके काफी करीब था जिससे एक्सपेरिमेंट के लिए दूसरे शहरों से इक्विपमेंट लाना आसान हो जाता साइट सेलेक्ट होने के बाद विक्रम साराभाई और होमी भाभा ने यहां के एक चर्च सेंट मैरी को रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन का कंट्रोल रूम बना दिया और इस चर्च के पादरी के घर को ऑफिस बनाया गया इसको लेकर धार्मिक लोगों ने विवाद भी किया लेकिन चर्च के पादरी ने खुद आगे जाकर लोगों को समझाया किया देश के हित के लिए बहुत जरूरी काम है लोग मान गए लेकिन चर्च के आसपास के इलाकों में मछुआरे रहते थे और उन्हें वहां से डिस्प्ले करना बहुत जरूरी था क्योंकि रॉकेट लॉन्चिंग के समय जरा सी मिस्टेक उनके जीवन के लिए खतरा बन सकती थी इसलिए उनकी जमीन के बदले थुंबा के कलेक्टर की मदद से मछुआरों के लिए पक्के मकान की व्यवस्था करवाई गई इसकेबाद ही वहां 1963 में भारत का पहला रॉकेट नाइक-अपाचे था। इसे 21 नवंबर 1963 को केरल के थुम्बा से लॉन्च किया गया था। यह एक अमेरिकी रॉकेट था, जिसे भारत ने ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए इस्तेमाल किया था। और यह पूरी विश्व को एक संदेश था कि भारत अब स्पेस की दौड़ में कदम रख चुका है या भारत को स्पेस सुपर पावर बनाने वाली है
विक्रम साराभाई का हमेशा से मानना था कि साइंस केवल लैब तक सुमित्रा ही रहनी चाहिए बल्कि उसका समाज और बेहतरीन और बच्चों के फ्यूचर के लिए और उसे फ्यूचर को सुधारने के लिए इस्तेमाल होना चाहिए इसी सोच के साथ 1960 में उल्लेख ग्रुप का इंप्रूव ऑफ़ साइंस एजुकेशन और 1966 में होमी जहांगीर बाबा की एक हवाई जहाज दुर्घटना में मौत हो गई वे व्यक्ति जिन्होंने भारत में न्यूक्लियर पावर की नींव रखी थी 1966 में उन्हें एटॉमिक एनर्जी कमिशन का अध्यक्ष बना दिया गया इनको लोगों को साथ ले चलने और किसी भी माहौल में खुद को डालने की अद्भुत कला थीऔरएटॉमिक एनर्जी कमिशन के साथ जुड़कर और वहां के मैकेनिक के साथ जुड़कर काम किया और न्यूक्लियर पावर में बहुत ही अच्छा काम किया ऑन 1967 में जादूगोड़ा में यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड की स्थापना हुई। 1971 में पाकिस्तान और भारत के युद्ध के ठीक पहले इंदिरा गांधी ने उनसे कहा कि मैं आपकी लीडरशिप में एक नया स्पेस कमीशन बनाने जा रही हूं लेकिन आपके ऊपर पहले ही बहुत ही काम है इसलिए आपको अध्यक्ष का पत्र छोड़ देना चाहिए और उन्होंने खुद को रिजेक्ट जैसा महसूस किया कोई सोच रहे थे कि इंदिरा गांधी अब उन पर पहले जैसा विश्वास नहीं रहा है इंदिरा गांधी ने समझते हुए का कि अगर आप किसी गति से काम करते रहे तो हमें गधे की हम आपको बहुत जल्दी खो देंगे क्योंकि सारा भाई दिन भर काम करते रहते थे इसलिए इंदिरा गांधी चाहती थी उन्हें कोई जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए इसलिए उन्होंने सोचा कि इस अध्यक्ष में रिजाइन करूंगा 30 दिसंबर 1971 में विक्रम साराभाई एक मीटिंग में थी और विक्रम साराभाई ने एपीजे अब्दुल कलम से बात करी। आप विक्रम साराभाई 30 दिसंबर 1971 में को सिर्फ 52साल की उम्र में उनका निधन हो गया
निष्कर्ष
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ISRO क्या है और यह कैसे काम करता है ?
होमी जहांगीर भाभा कौन थे और साल 1966 में क्या हुआ था |
भारत का संविधान क्या कहता है||(What does the Constitution of India say)