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    एक राष्ट्र, एक चुनाव योजना क्या है|(What is one nation one election scheme)

    वन नेशन वन इलेक्शन क्या हैवन नेशन वन इलेक्शन क्या है

    भारत में समय-समय पर सरकार नई-नई योजना निकलती रहती है अभी कुछ वक्त पहले भारत सरकार वन नेशन वन इलेक्शन एक योजना लाने की भारत सरकार सोच रही थी और इस योजना के ऊपर भारत सरकार यानी केंद्र सरकार ने एक समिति भी बनाई थी जिसके अध्यक्ष थे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ।


    वन नेशन वन इलेक्शन जैसे कि नाम से ही पता चल रहा है कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक ही साथ कर दिए जाएं अब कई लोग सोच रहे होंगे इससे क्या फायदा होगा ।


    हमारे देश में समय-समय पर चुनाव होते रहते हैं कभी किसी राज्य में तो कभी किसी राज्य में या किसी समय केंद्र में । तो समय समय पर चुनाव होने के कारण भारत में बहुत पैसे खर्च होते हैं और सरकारी टीचर या सरकारी अधिकारियों का समय भी बहुत लगता है और वन नेशन वन इलेक्शन योजना लाने यह फायदा होगा । इसके जरिए पैसे भी कम खर्च होंगे और सरकारी कर्मचारी और सरकारी अधिकारी के पास समय भी बचेगा


    स्वतंत्र भारत में जब पहले चुनाव 1951 से लेकर 1967 तक भारत में वन नेशन वन इलेक्शन हुए थे उसके बाद भारत में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग होने लग गए थे आज हम आपको बताएंगे वन नेशन वन इलेक्शन क्या है और इसे लागू करने में क्या-क्या परेशानी आ सकती है और इससे फायदे क्या-क्या है वन नेशन वन इलेक्शन भारत में कब शुरू किया गया इन सभी विषयों के ऊपर आपको जानकारी दी जाएगी इसलिए लेेख को पूरा जरूर पढ़ें ||

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    वन नेशन वन इलेक्शन क्या है

    जैसे कि आपको नाम से ही पता चल रहा है वन नेशन वन इलेक्शन यानी राज्यों के चुनाव और केंद्र के चुनाव एक साथ कर दिए जाएं

    भारत में वन नेशन वन इलेक्शन की पद्धति पहले लागू थी


    भारत में वन नेशन वन इलेक्शन की पद्धति पहले से लागू जब भारत में पहले चुनाव 1951-52 में हुए थी। उस समय से लेकर 1967 यह परंपरा लागू थी 1969 में बिहार की सरकार दल बदल दल बादल का मतलब होता है (जब कोई एक दल का व्यक्ति दूसरे दल में चला जाए 1985 में भारत सरकार एक कानून लाई थी जिसका नाम था दल बदल कानून। इसे अनुसूची 10 के अंदर रखा गया है दल- बदल कानून यह कहता है कि यदि कोई व्यक्ति चुनाव जीतने के बाद किसी दूसरी पार्टी में जाता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी लेकिन यदि कोई दूसरी डाल का व्यक्ति दो तिहाई का बहुमत लेकर किसी दूसरी पार्टी में जाता है तो उसकी सदस्यता निष्क्रिय नहीं होगी उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के पूर्व सीएम एकनाथ शिंदे ) कारण अल्पमत मांगी थी और विधानसभा को भंग करना पड़ा 1970 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव 11 महीने पहले कर दिए थे इन सब के चलते केंद्र और राज्य के चुनाव अलग-अलग समय पर हो गये।

    विश्व में किन देशों में वन नेशन वन इलेक्शन चल रहे हैं


    विश्व के कई देशों में वन नेशन वन इलेक्शन की परंपरा चली आ रही है इनमें से कुछ देशों के बारे में जानकारी हम आपको नीचे दे रहे हैं
    1:जर्मनी

    2:जापान

    3:स्वीटजरलैंड

    4: इंडोनेशिया

    रामनाथ कोविंद ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा

    1:सभी राज्य विधानसभा का कार्यकाल 2029 तक बढ़ा दिया जाना चाहिए

    2: पहले फीस में लोकसभा विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं दूसरे देश में 100 दिन की भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं

    चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा ,स्थानीय निकाय चुनाव के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड तैयार करेगा

    3:कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है

    वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थन में क्या कहा जा रहा है

    वन नेशन वन इलेक्शन लागू होते ही लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ कर दिए जाएंगे जिससे पैसे भी बचेंगे ।

    वन नेशन वन इलेक्शन के विपक्ष में क्या कहा जा रहा है

    अगर लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ कर दिए जाएं तो विपक्ष का कहना है की राष्ट्रीय स्तर पर और राज्य स्तर पर मामले अलग-अलग होते हैं अगर एक साथ चुनाव कर दिए जाते हैं तो वोटर के फैसले पर असर पड़ सकता है।

    वन नेशन वन इलेक्शन लोकसभा से पास क्यों नहीं हुआ


    वन नेशन वन इलेक्शन बिल जो संसद में आया था वह एक संशोधन विधेयक था संशोधन विधेयक के बारे में संविधान में आर्टिकल 368 के अंदर बताया गया है संशोधन का मतलब होता है कि आप संविधान में परिवर्तन कर रहे हैं.
    वही साधारण विधेयक का मतलब होता है कि आप संविधान में कुछ परिवर्तन नहीं कर रहे हैं इसके बारे में आर्टिकल 107 के अंदर बताया गया है
    लोकसभा में जब वन नेशन वन इलेक्शन बिल लाया गया बीजेपी की तरफ से। तो उस समय इसके पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े।

    किसी भी बिल को पास होने के लिए लोकसभा से कुल सांसदों का 50% बहुमत या उस समय कुल सांसदों का दो तिहाई बहुमत किसी बिल को पास होने के लिए चाहिए होता है और बीजेपी के पक्ष में 269 वोट पड़े थे। और उसे समय संसद में कुल सांसद 461 थे।
    461 का दो तिहाई होता है 307 । और बीजेपी को मिले 269 वोट एक बात तो समझ में आती है की खुद बीजेपी को उसी के सदस्यों ने वोट नहीं दिया क्योंकि सरकार बनाने के 272 लोकसभा में चाहिए होते हैं और इस बिल को 269 सदस्यों ने अपने पक्ष में वोट दिया यानी बीजेपी कि सांसदों ने इस बिल को वोट नहीं दिया।

    यह बिल संविधान संशोधन बिल क्यों कहा जा रहा है


    हमारे देश में लोकसभा और विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का होता है यानी 5 साल में लोकसभा के चुनाव और 5 साल में विधानसभा के चुनाव और यह संविधान में लिखा गया है या तो संविधान में परिवर्तन करके लोकसभा के कार्यकाल को आगे करना होगा या विधानसभाओं के कार्यकाल को आगे करना होगा और इसीलिए इसे संविधान संशोधन विधेयक कहा जा रहा

    निष्कर्ष

    उम्मीद करते हमारे द्वारा बताई गई जानकारी आपको समझ में आ गई होगी यदि कोई सवाल है कमेंट करके बताएं अधिक जानकारी के लिए आप ईमेल कर सकते हमारे ईमेल पता नीचे दिया गया है
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