भारत में आरक्षण की शुरुआत कैसे हुई|(How did reservation start in India)

 नमस्कार दोस्तों Best My Smart Tips Blog में आपका स्वागत है भारत में समय-समय पर आरक्षण के ऊपर चर्चा होते रहती है और राजनीति में आरक्षण के लिए मांग भी उठती रहती है लेकिन यह आरक्षण शब्द आया कहां से क्या आपको इसके बारे में जानकारी है आपको इसके बारे में जानकारी नहीं है तो चिंता मत कीजिए क्योंकि हम आपको आरक्षण का इतिहास बताने वाले हैं कि यह आरक्षण आया था और इस आरक्षण की शुरुआत कैसे हुई भारत में इसलिए हमारी इस आर्टिकल को पूरा जरूर पड़े लोगों को शेयर करिए

भारत में आरक्षण की शुरुआत कैसे हुई

आरक्षण का इतिहास भारत

भारत में आरक्षण की व्यवस्था आजादी से पहले ही शुरू हो गई थी आज से करीब 141 साल पहले और आजादी से करीब 75 साल पहले आरक्षण की नींव रख दी गई थी ज्योति राव गोविंद राव फुले के द्वारा । 19वीं साड़ी में महान भारतीय विचारक समाजसेवी और लेखक ज्योतिबा गोविंद राव फुले ने देश भर में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ सरकारी नौकरी में आरक्षण प्रतिनिधित्व की मांग की गई थी

यह कहते थे की शादियों में पंडित की क्या जरूरत है जो शादी बिना पंडित के भी शादी के फेरे लिए जाए उसे भी मान्यता दी जाए

इस विषय की जांच करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने हंटर कमीशन का गठन किया चलिए आपको बताने की कोशिश करते हैं हंटर कमीशन क्या था

 हंटर कमीशन क्या था

ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मण समाज को धंधा बातकर बिना किसी ब्राह्मण बहुत पुरोहित के विवाह संस्कार को शुरू कराया था। और साथ ही इसे मुंबई कोर्ट से मान्यता भी दिलाई थी उन्हीं की वजह से पीछे और अछूत माने जाने वाले वर्ग की भलाई के लिए साल 1882 में ब्रिटिश ने अंतर कमीशन आयोग का गठन किया आरक्षण को लेकर देश में हुई कई एवं घटनाओं में और देखकर भारत में आरक्षण व्यवस्था बनी और इसे लागू हुई

साल 1891 में  त्रावणकोर मैं साबरमती रियासत में सर्वाधिक सेवा में योग की मूल निवासियों की अनदेखी की गई थी और इसी के तहत विदेशी लोगों को भर्ती करने के खिलाफ प्रदर्शन भी किया गया और साथ ही सरकारी नौकरियों मे मांग की गई

उसके बाद साल 1901 में महाराष्ट्र की कोल्हापुर रियासत में शाहू महाराज ने आरक्षण देने की व्यवस्था शुरू की गई थी उन्होंने लोगों के लिए काफी काम किया ताकि सभी को सामान ऑप्शन मिल सके इसके अलावा उन्होंने पिछले वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों मे नौकरियों की व्यवस्था की कहा जाता है कि यह आरक्षण को लेकर पहले सरकारी आदेश हुआ था

साल 1908 में अंग्रेजों ने भी प्रशासन और उन लोगों की हिस्सेदारी को बढ़ाने का प्रयास किया जिनकी हिस्सेदारी प्रशासन में कम थी या बराबर नहीं थी और अंग्रेजों ने भी आरक्षण की व्यवस्था को शुरू की।

1905 में बंगाल का विभाजन हो जाता है और बंगाल का विभाजन निष्क्रिय करने के लिए बड़ा प्रदर्शन होने  लग गया और उसके बाद अंग्रेजों ने भारत में यह दिखा कि इस विभाजन से किसको फायदा है और मुसलमानों से मिले और मुसलमानों से कहा कि आप मुस्लिम लीग बने अंग्रेजों ने कांग्रेस भी बनाई थी और यही मुस्लिम लीग अपने लिए एक नए देश की मांग करती है 1906 में मुस्लिम लीग का गठन कर दिया गया. अंग्रेजी समझ गई थी कि भारत में यदि शासन करना है तो फूट डालो और राज करो.

साल 1909 में अंग्रेज एक अधिनियम लाया गया और उसे अधिनियम कहा था कि अब से मुसलमान केवल मुसलमान को ही वोट देगा और मुसलमान की बात मुसलमान ही रखेगा किसी व्यवस्था को पृथक निर्वाचन पद्धति कहा जाता है और भारत में विरोध चला रहा 

1911 में कोलकाता से उठाकर दिल्ली भारत की राजधानी बना दिया। 1919 में एक और अधिनियम आता है जिसमें कहा जाता है सिख- सिख को ही वोट देगा और एंग्लो इंडियन एंग्लो इंडियन को ही वोट देगा । अब जहां निर्वाचित होकर लोग जाने थे और यह लोग बड़े खुश हुए कि हमारा प्रतिनिधि  हमारा ही व्यक्ति करेगा और धीरे-धीरे अंग्रेज हमें तोड़ने लगी कांग्रेस के द्वारा एक गलती हुई खिलाफत आंदोलन के समय। कि मुसलमान के द्वारा जिस चीज की मांग की जा रही थी उसे मान्यता मिल गई और यह कहा कि अंग्रेजो के द्वारा यदि तुम हमारा साथ देते हो अंग्रेजों को भगाने के लिए तो हम तुर्की के अंदर खिलाफत आंदोलन में तुम्हारा साथ देंगे और यही से दृष्टीकरण की राजनीति चली गई

1929 में 10 साल की जो व्यवस्था शुरू की जांच करने के लिए आने वाली थी लेकिन यह 1928 में आ गए और 1928 में साइमन वापस जो लेकिन 1928 में इस विरोध में लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई और उन्होंने कहा कि जो ऊपर बढ़ने वाली वाली हर लाठी। अंग्रेजों पर आने कील में कफन के समान है। और जिस व्यक्ति ने लाला लाजपत राय की मृत्यु हुई उससे भगत सिंह ने गोली मारी ।

1927 में यह साइमन कमीशन जब कुछ नहीं कर सका 1928 में अपनी बातें बताइए और महात्मा गांधी ने उनकी बातें नहीं मानी और कहा कि हम अवज्ञा आंदोलन शुरू करेंगे अवज्ञा का मतलब होता है कानून नहीं मानना।

पहले नमक बनाने का कानून सिर्फ अंग्रेजों के पास था महात्मा गांधी ने साबरमती से पैदल चलकर दाडी आंदोलन शुरू किया और नमक आंदोलन निष्क्री किया उसके बाद सरकार हिल गई फिर महात्मा गांधी को और अन्य लोगों को को बुलाया गया लंदन लेकिन महात्मा गांधी पहले मीटिंग में नहीं गई दूसरी मीटिंग में महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर गये। 

 और गांधी जी ने मांग करी लेकिन भीमराव अंबेडकर जी ने दलितों के लिए भी एक ऐसी बात कह दी उन्होंने कहा कि दलित दलित को ही वोट दी और महात्मा गांधी ने कहा कि मैं हिंदुओं को अलग नहीं होने दूंगा और वह भारत आ आ गई और और  अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया और महात्मा गांधी को जेल डाल दिया गया और महात्मा गांधी ने जेल के अंदर आवरण आंदोलन शुरू कर दिया और इससे पहले भी महात्मा गांधी किसानों के लिए आवरण आंदोलन शुरू किए थे 18 सितंबर को महात्मा गांधी जेल चाहिए ऑनलाइन करते हैं कि जब दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र का फैसला वापस नहीं लिया जाता वह कुछ भी नहीं खाएंगे और एक पत्र लिखा गया मैकडोनाल्ड. 22 सितंबर को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर गांधी जी से मिलने यरवदा जेल पुणे पहुंचे और गांधी जी के सेक्रेटरी देसाई के नोट्स के मुताबिक डॉ भीमराव अंबेडकर दलितों के लिए पॉलिटिक्स पावर चाहते हैं यह उनकी बराबरी के लिए जरूरी है दोनों अपनी पर अड़े रहे 23 सितंबर तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला

क्रिस्टोफर जॉबफरलाट अपनी एक पुस्तक डॉ भीमराव अंबेडकर एंड अनटचबिलिटी मैं यह लिखा गया है कि सुबह महात्मा गांधी के बेटे देवदास गांधी अपनी नाम आंखों से डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के सामने गिरगिट आते हुए कहा कि पिताजी की तबीयत खराब हो रही है जरोदा जेल में उपवास के तीसरे दिन यानी 23 सितंबर को महात्मा गांधी का ब्लड प्रेशर खतरे से बाहर बहाने लग गय भीमराव अंबेडकर ने समझौते के लिए तैयार हो गए

24 सितंबर को शाम 5:00 बजे पुना पैक्ट पर 23 लोगों ने अपने हस्ताक्षर करें हिंदुओं और गांधी की ओर से मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर करें वहीं दलितों की तरफ से डॉ भीमराव अंबेडकर ने हस्ताक्षर करते समझौते में यह तय हुआ कि दलित अपर कास्ट हिंदुओं के साथ वोट करेंगे ब्रिटिश सरकार ने दलितों के लिए 71 सीट दी थी जिन्हें बढ़कर 148 कर दिया गया और महात्मा गांधी इस समझौते के लिए तैयार हो गए

महात्मा गांधी सिर्फ 5 साल के लिए आरक्षण देने के लिए कह रही थी लेकिन डॉ भीमराव अंबेडकर 15 साल के लिए कह रहे थे और 10 साल तक आरक्षण राजी हुए और महात्मा गांधी ने अपना आंदोलन तोड़ा।

1942 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के समर्थन के लिए आखिरी भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की थी इसके अलावा उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण देने की मांग भी की थी

1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद एसटी ,एससी और ओबीसी के लिए कई अहम फैसले किए गए थे

1953 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप में पिछले वर्गों का मूल्यांकन करने के लिए  केेलगर आयोग स्थापित किया गया जिसकी रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचियां में संशोधन किया गया था

1979 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछले वर्गों का मूल्यांकन करने के लिए मंडल कमीशन को स्थापित किया गया

1982 में यह निर्देश दिया गया था कि सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में क्रमशः 15 फ़ीसदी और 7.5 फीसदी वैकेंसी में SC और ST उम्मीदवारों के लिए आरक्षित की जानी चाहिए

साल 1990 में भारत में आरक्षण को लेकर सबसे बड़ी रियासत शुरू की गई थी जबकि बीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू किया और मंडल कमीशन की सिफारिश के बाद देश में नौकरियों में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी जिसमें अनुसूचित जाति के लिए 15% और अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी इसी के साथ ओबीसी को पोते के लिए 27% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी

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इसमें पहले पिछड़ी जातियों के साथ जो घटनाएं घटी जो अन्याय हुआ वह द्वारा ना हो 

क्योंकि पिछड़े वर्ग के लिए समान अवसर पैदा करना ताकि वह भी आगे पहुंच सके

योग्यता के आधार पर समानता सुनिश्चित करने के लिए यानी सभी लोगों को योग्यता के आधार पर अपने के लिए पहले उन्हें समान स्तर पर लाया जाना चाहिए

इस बात का आपको ध्यान रहे

डॉ भीमराव अंबेडकर ने 10 साल के लिए आरक्षण लागू किया था लेकिन राजनीति पार्टी से बढ़ते जा रही है और आज भी यह बढ़ते जा रहा है भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि 1982 से मुसलमान इस सुविधा का भोग ले रहे हैं ईसाइयों को 1920 से यह सुविधा मिल रही है अनुसूचित जनजाति को सिर्फ 1937 से कुछ लाभ दिए जा रहे हैं इसलिए उन्हें लंबे समय तक या सुविधा देनी चाहिए क्योंकि एक बार में 10 साल का प्रस्ताव पारित हुआ है और हम इसे स्वीकार करते हैं हालांकि इसे बढ़ाने का विकल्प हमेशा रहना चाहिए

 निष्कर्ष

उम्मीद करते हमारे द्वारा बताई गई जानकारी आपको समझ में आ गई होगी यदि आपके पास इस विषय से संबंधित कोई प्रश्न है तो कमेंट करके पूछे अधिक जानकारी के लिए हमें ईमेल करें क्योंकि हमने आज आपको इस विषय के ऊपर संपूर्ण जानकारी दे दी है वह भी सरल भाषा में

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