नमस्कार दोस्तों ! Best My Smart Tips Blog में आपका स्वागत है भारत में समय समय पर अनेकों त्यौहार आते हैं इन त्योहारों का अपने में एक अलग महत्व है यह हमारी संस्कृति को दर्शाते हैं और हमें एक अलग प्रेरणा देती है जिंदगी में संस्कार सभ्यता और अनुशासन हम इन त्योहारों से ही तो मिलता है भारत में दीपावली, होली, रक्षाबंधन, छठ ,दुर्गा पूजा दशहरा जैसे कई त्यौहार बनाए जाते हैं इन त्योहारों के बारे में जानकारी प्राप्त करके एक अलग आनंद आता है हम अभी इस विषय के ऊपर लिख भी रहे हैं तो हमें एक अलग आनंद आ रहा है कि हमें इस विषय के ऊपर जानकारी देने का एक अवसर मिला है। जब जब बुराई बड़ी है तब तक भगवानों ने आकर दुष्ट का अंत कर है मैं देवभूमि उत्तराखंड में रहता हूं और मुझे यहां एक अलग आनंद आता है यहां का मौसम यहां की प्रकृति जीवन में एक अलग आनंद का अनुभव करती है जहां ऋषि मुनियों ने वेद लिखे हो जहां चार धाम हो वहां हर किसी को आनंद आता है लोग यहां घूमने भी आते हैं यहां की संस्कृति को भी जान रहे हैं
बिहार में छठ होता है जो की एक अलग संस्कृति को दर्शाता है उगते सूरज की पूजा सब करते हैं ढलते सूरज की पूजा जहां होती है वह बिहार और पश्चिम बंगाल जैसी जगह में होती है हम इस प्लेटफार्म में आर्टिकल लिखते हैं और किसी राज्य के बारे में अगर हमसे पूछा जाए तो वहां वहां की खूबी बताना हमारा धर्म है छठ जैसा महापर्व साल में दो बार आता है लेकिन भारत की संस्कृति को दर्शाने वाला महापर्व है। आज किस आर्टिकल में हम आपको दीपावली छठ और धनतेरस के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हमारे इस वेबसाइट को अधिक से अधिक लोग तक पहुंचाएं और यह वेबसाइट कैसी लगी कमेंट करके अवश्य बताएं क्योंकि हम समय-समय पर आपके लिए जानकारियां लेट रहते हैं आपने देखा होगा पिछले कुछ सप्ताह में हमने खालिस्तान के ऊपर तथा अन्य विषयों के ऊपर भी आपको जानकारी थी उम्मीद करते हैं हमारे द्वारा बताई गई जानकारी आपको समझ में आ रही होगी आगे भी हम बस आप हमारा साथ दीजिए।
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दीपावली का क्या महत्व है
दीपावली के दिन भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आए थे जब कैकेई के द्वारा राजा दशरथ से कहा कि आप आप राम को 14 वर्ष का वनवास दे दीजिए और मेरे पुत्र यानी भारत को अयोध्या का राजा बना दीजिए और राजा दशरथ ने श्री राम को बुलाया और उन्हें 14 वर्ष का वनवास दे दिया जिनका कल राज्याभिषेक होने वाला था उन्हें वनवास मिल गया ।
जब श्री राम वनवास गए तो उसके बाद एक दिन रावण माता सीता को श्रीलंका ले गया और वहां से भगवान श्री राम ने रावण का अंत किया और जिस दिन रावण का अंत हुआ उसे हम दशहरा के रूप में बनाते हैं । दीपावली को प्रकाश भी हम कहते हैं यानी बुराई का अंत प्रकाश का उदय । आप एक बार सोचिए हम हर साल दशहरा में रावण का अंत करते हैं हमारे अंदर राम जी जैसे गुण हैं जो अपने पिता की आज्ञा मानने के लिए 14 वर्ष का वनवास करने को तैयार हो गए आज के वक्त में नारी शक्ति को हम ऐसे दिखते हैं ऐसे शब्दों का उसे करते हैं नारी शक्ति के लिए जो की आपत्तिजनक होता है नारी शक्ति का सम्मान करें और अपने धर्म का सम्मान करें
छठ क्यों बनाया जाता है
1: जब पांडव हुए में सब कुछ हार गए तो उसे दिन द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था जिस कारण बाद में पांडव को सारा राज्य मिल गया लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी माई भाई बहन है और इस दिन सूर्य देव की आराधना करना फलदाई होता है।
2: इसके अलावा के एक और कथा प्रचलित है। पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उस राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। इसमें बैठी देवी ने कहा, ‘मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।’ इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।
3: माता सीता ने भी की थी सूर्यदेव की पूजा
छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इससे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
4: महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत
हिंदू मान्यता के मुताबिक, कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
छठ व्रत के नियम क्या है
पहले दिन सूर्य को अर्घ्य देते हैं और उसके बाद प्रसाद का सेवन करते हैं और फिर बिना पानी पिए और कुछ खाए उपवास रखते हैं जिसे निर्जला उपवास भी कहा जाता है जो की 36 घंटे का होता है फिर अगले दिन ढलते सूरज अर्घ्य को देते हैं । और फिर अगले दिन उगते सूरज को अर्घ्य देने के बाद उपवास समाप्त हो जाता है
इस आर्टिकल पर हमारी राय
आज किस आर्टिकल में हमने आपको छठ का महत्व बताया आपको यह आर्टिकल कैसा लगा कमेंट करके अवश्य बताएं यदि आपके पास कोई जानकारी है तो हमें कमेंट करके बताएं यदि आपके पास कोई सवाल है तो आप हमें ईमेल भी कर सकते हैं यह आर्टिकल आपको कैसा लगा कमेंट करके बताएं धन्यवाद
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